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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/154 ग्रोटीअस (1583-1645)
यद्यपि ग्रोटीअस के युग निर्माणकारी लेटिन ग्रंथ (1625) में प्राकृतिक नियम के नीतिशास्त्रीय और न्यायशास्त्रीय क्षेत्रों के इस विभाजन को स्पष्ट रूप से दृष्टि में रखा गया है। उसमें ग्रोटीअस ने यह बताया है कि प्राकृतिक नियम का सिद्धांत मुख्यतः अंतर्राज्यीय सम्बंधों के लिए लागू होता है, फिर भी सामान्य विवेचन से वह उसके व्यापक नैतिक अर्थ को भी स्वीकार करता है। वह प्राकृतिक नियम को सम्यक् ज्ञान के अनुशासन के रूप में परिभाषित करता है, जो यह बताता है कि कोई भी कार्य नैतिक दृष्टि से अनुचित है या नैतिक दृष्टि से आवश्यक (उचित) है, यह उस कार्य के मानव की बौद्धिक एवं सामाजिक प्रकृति के साथ अनुकूल अथवा प्रतिकूल होने पर निर्भर होता है। यह परिभाषा स्पष्ट रूप से चाहे नैतिक कर्त्तव्य सम्बंधी सभी नियमों पर लागू न हो, फिर भी सामाजिक आचरण से सम्बंधित नैतिक कर्तव्यों के एक बड़े भाग पर लागू होती है, साथ ही वह सामाजिक आचरण के उन नियमों पर भी लागू होती है, जो व्यक्ति और समाज के पारस्परिक दायित्व का निर्धारण करते हैं, यद्यपि ग्रोटीअस विशेष रूप से इस परवर्ती अंश से सम्बंधित है। ग्रोटीअस और उस युग के दूसरे लेखकों के अनुसार किसी भी अवस्था में प्राकृतिक नियम, ईश्वरीय नियम का ही एक अंश है जो कि मनुष्य की मूलभूत प्रवृत्ति से अनिवार्यतया निर्गमित होते हैं। मनुष्य पशुओं से इसी रूप में भिन्न है। उसमें अपने साथियों के साथ शांति एवं सहयोग से रहने की विशेष अभिलाषा तथा सामान्य सिद्धांतों के आधार पर कार्य करने की प्रवृत्ति है। गणित के सत्यों के समान ये प्राकृतिक नियम ईश्वर से भी अपरिवर्तनीय है (यद्यपि उसके परिणामों को किसी विशेष अवस्था में ईश्वरीय आज्ञा से निरस्त किया जा सकता है)। इस प्रकार मानवीय प्रकृति के अमूर्त चिंतन के द्वारा उसका अनुभव निरपेक्ष बोध होता है। यद्यपि इसकी मानव समाज के द्वारा सामान्य स्वीकृति होने से, इसके अस्तित्वको अनुभवाश्रित एवं सापेक्ष रूप में भी जाना जा सकता है। रोमन न्याय-विदो के अनुसार जिनसे प्राकृतिक नियम का यह विचार ग्रहण किया है ये नियम विधायक नियम (कानून) से अलग होकर वस्तुतः अपनी कोई तात्त्विक सत्ता नहीं रखते हैं। प्राकृतिक नियम वे तथ्य हैं, जो इन अस्तित्ववान विधियों के मूल में अंतनिर्हित है और जिन्हें उन विधियों के द्वारा ही खोजा जा सकता है। अंततोगत्वा यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह ईश्वर उनसे परे