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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/150 ने कहा कि उसे बिना हत्या के दण्ड देना चाहिए। 5. मैं सोचता हूं कि व्यक्तिगत सम्पत्ति और दासता के सम्बंध में प्राचीन
और किसी सीमा तक मध्ययुगीन ईसाई धर्म के दृष्टिकोण को इसी रूप में ठीक प्रकार से समझा जा सकता है। दोनों ही मनुष्य जाति के सभी सदस्यों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि मनुष्य जन्मना स्वतंत्र है और भूमि की उपज स्वाभाविक रूप से सामूहिक है और जब ईसा का राज्य पृथ्वी पर उतरेगा, दोनों ही समाप्त हो जाएंगे। यद्यपि दोनों लौकिक समाज व्यवस्था के अंग स्वीकार कर लिए गए हैं, लेकिन दोनों ही प्रकार की असमानताओं की कठोरता को गुलामों और गरीबों के साथ भाईचारे के व्यवहार के द्वारा कम किया जा सकता है। 6. प्लेटो के इस सामान्यीकरण का एक महत्वपूर्ण अपवाद है, जैसा कि वह लाज में न केवल सामूहिक उपासना के नियमन की व्यवस्था करता है, वरन् उन अप्रामाणिक रीति रिवाजों और धारणाओं के लिए कठोर दंड की व्यवस्था करता है, जो कि (प्लेटोवादी) परम्पराओं के विरोधी थी। 7. यद्यपि स्वयं ईसाइयत के साम्राज्यवादी अत्याचार बाह्य दृष्टि से इसके समान प्रतीत होते हैं लेकिन वहां हमने जो दृष्टिकोण अपनाया है उसके अनुसार उन्हें समान नहीं कहा जा सकता है क्योंकि उसमें मिथ्या विश्वास को ही मूलभूत पाप होने की धारणा नहीं थी। 8. प्रारम्भिक ईसाई धर्म में प्रायश्चित के प्रत्यय की क्रूरता को बताने के लिए इतना ही कहना पर्याप्त है कि एक से अधिक लेखक ईसा की इस प्रायश्चित व्यवस्था का विरोध करते रहे हैं। 9. यह देखा जा सकता है कि इस (ईसाई) दृष्टिकोण और गैर ईसाई दर्शन के सद्गुण को सद्गुण के लिए मानने के प्रयासों के बीच के इस विरोध को एक से अधिक प्रारम्भिक ईसाई लेखकों ने प्रसन्नतापूर्वक बताया है उदारणार्थ-लेक्टेनिक्स (300 ई.) बताता है कि प्लेटो और अरस्तू सद्गुण को इस लौकिक जीवन से सम्बंधित मानकर, उसे एक मूर्खता ही बना दिया है। जब कि वह स्वयं क्षम्य असंगति के साथ यह कहता है कि मनुष्य का सर्वोत्तम शुभ सुख में निहित नहीं है, अपितु आत्मा और ईश्वर के बीच पुत्र सुलभ सम्बंध की चेतना में है।