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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/146 मतभेदों के कारण जनसाधारण अनिश्चयात्मक स्थिति में होता था और स्वाभाविक रूप से वह किसी भी धार्मिक एवं परम्परानिष्ठ लेखक की उसी धारणा को स्वीकार कर सकता था, जो कि उसे पालन करने की दृष्टि से सुविधाजनक प्रतीत होती। इसी प्रकार एक निर्बल नैतिक चेतना किसी भी नैतिक नियम के वांछित अपवाद के लिए सूक्ष्मता से शास्त्र (श्रुति) के प्रमाण को खोजने की दिशा में प्रवृत्त हुई। यद्यपि कैथोलिक चर्च के द्वारा संसार पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए किए जाने वाले संघर्ष के दौरान जब शास्त्र की आज्ञाओं के पालन के सिद्धांत को वैयक्तिक निर्णयों पर विश्वास करने के सिद्धांत के साथ एक गहन एवं दीर्घकालिक, किंतु संतुलित विवाद में उलझा दिया गया, तब सुधार-युग के बाद तक इस संकट ने अपने दुर्जेय अंशों को मान्य रखा हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता है। जेज्यूट्स (शिथिलाचारी)
ऐसा प्रतीत होता है कि प्रति सुधारवाद के अग्रणी जेस्यूट्स की दृष्टि में शास्त्र (श्रुति) को प्रमाण मानने के लिए मूलतः आवश्यक. यह था कि जनसाधारण को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए कि वे अपने निर्णयों को अपने मार्गदर्शक धर्मोपदेशकों के निर्णयों के प्रति समर्पित कर सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह आवश्यक था कि धर्मसंघीय (चर्च के) नैतिक नियमों में सांसारिक आवश्यकताओं को स्थान देकर पाप-प्रकाशन (पश्चाताप) को आकर्षक बनाया जाए। सम्भाव्यवाद के सिद्धांत ने इन सुविधाओं को स्थान देने के लिए एक लोकप्रिय पद्धति प्रदान की। यह सिद्धांत यह मानकर चलता है कि जनसाधारण से उस प्रश्न पर गहन समीक्षा की अपेक्षा नहीं करना चाहिए, जिसके लिए विद्वानों में भी मत-वैभिन्य होता है। इसलिए जनसाधारण में किसी ऐसी बात के लिए दोषी नहीं मानना चाहिए, जिसे किसी एक भी विद्वान ने प्रामाणिक माना हो, इसलिए उसके अपराधों का प्रायश्चित्त देने वाले व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया कि यदि उसके (अपराधी के) पक्ष में कोई भी ऐसा मत प्रस्तुत कर पाना सम्भव हो, जो कि उसे निर्दोष सिद्ध कर दे, तो उस प्रायश्चित्त देने वाले व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी स्वयं की मान्यता के प्रतिकूल भी यदि कोई ऐसी मान्यता हो तो उसे बताए, ताकि वह अपनी अंतरात्मा को आत्मग्लानि के भार से मुक्त कर सके। जिन बातों को इस सम्भाव्यवाद में (चर्च की) त्रास की कठोरता को दूर करने की सच्ची इच्छा से अपनाया था, उनके परिणाम 17वीं शताब्दी में पास्कल के अमर ग्रंथ लेटरस् प्रोविंशियल में प्रकट हुए।