________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/62 सद्भाव होता है और यह उन्हें बढ़ावा देता है। फिर भी इसके अंतर्गत कोई भी विशेष दुर्गुण अच्छाई की छोटी सी भी मात्रा का विरोधी हो जाएगा। इस सद्गुण की पूर्णता से युक्त उच्चमना व्यक्ति प्रतिष्ठित व्यक्तियों के द्वारा दिए जाने वाले बड़े सम्मान को पाकर भी गर्वोन्मत नहीं होगा, क्योंकि जो उसका प्राप्तव्य है उसकी अपेक्षा से वह कुछ भी नहीं है। वह जन साधारण की अपेक्षा नहीं रखता है तथा उस सम्मान से, जो कि ये उसे देते हैं पूरी तरह उदासीन रहता है, जिन लक्षणों के द्वारा अरस्तू महान् जीवन के इन गुणों की विस्तार से चर्चा करता है, वे ईसाई आदर्शों से अपने विरोध के कारण अधिक रोचक हो गए हैं। सामान्यतया उच्चमना व्यक्ति धनी और कुलीन होगा। वह दूसरों पर कृपा-दृष्टि करना पसंद करेगा, किंतु किसी की कृपा-दृष्टि (अनुग्रह) प्राप्त करने में वह शर्मिंदा होगा। किसी ने उस पर अनुग्रह किया है, इस बात की याद दिलाई जाना भी पसंद नहीं करेगा। वह सभी प्रकार की पराधीनता से बचता है। जब कभी कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना होता है, तो वह निष्क्रिय एवं प्रमादी रहता है। वह दोस्ती और दुश्मनी-दोनों के सम्बंध में खुले दिल वाला होता है, क्योंकि वह किसी से भी डरता नहीं है। जन-साधारण के प्रति उसका रुख व्यंग्यात्मक रहता है, इसे छोड़कर वह सामान्यतया निष्कपट एवं विद्वेष से दूर होता है, गप्पबाज नहीं होता है, जीवन की छोटी-छोटी आवश्यकताओं के प्रति वह चिंतित नहीं रहता है। किसी (आश्चर्य) से चकित नहीं होता है। उसकी प्रशंसा नहीं करता है। उसकी चाल धीमी, स्वर गम्भीर और वाणी विवेकपूर्ण होती है। सम्मान से सम्बंधित सद्गुणों के पश्चात् सज्जनता आती है। यह नैतिक गुण सीमित नाराजगी के अवसरों में अभिव्यक्त होता है,अरस्तू के सद्गुणों की यह सूची सामाजिक व्यवहार की अच्छाइयों से सम्बंधित है, अर्थात् मैत्री (खुशामद एवं रूखे मन के रुम में बीच का माध्य) और सच्चाई प्रभावशाली प्रत्युत्पन्नमति से समाप्त होती है। अपने ऐतिहासिक महत्त्व के अतिरिक्त भी विषय के प्रति स्थाई अभिरुचि उत्पन्न करने की दृष्टि से सद्गुणों और दुर्गुणों का यह विवरण एक प्रामाणिक एवं सूक्ष्म विश्लेषणात्मक अनुशीलन प्रस्तुत करता है, किंतु यह मानवीय आचरण पर व्यापक दृष्टिकोण से गंभीर विचार करने के प्रयास पर आधारित नहीं दिखाई देता है। यह मात्र जीवन के विभिन्न अंगों, कार्यों और सम्बंधों के लिए समुचित शुभता के प्रतिमानों को प्रस्तुत करता है। यह साहस का क्षेत्र युद्ध के संकट तक और मिताचार का सम्बंध दैहिक सुखों तक सीमित कर देता है। इसी प्रकार उदारता का अर्थ स्वहित और लोकहित के व्यय में अंतर नहीं करना, उसके विवेचन