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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/94 झुकता है। वह स्वयं के प्रति ही कहता है कि कुछ ही क्षणों के पश्चात तू भी हेड्रीजानस
और आगस्टस के समान कुछ भी और कहीं भी नहीं रहेगा। वह अपने एक महत्वपूर्ण कथन में आश्चर्य प्रकट करते हुए कहता है कि यह कैसे हो सकता है कि यद्यपि देवताओं ने सम्पूर्ण वस्तुओं की मनुष्य के लिए उपकारी और सम्यक् होने की व्यवस्था की है, तो भी उन पुण्यात्मा मनुष्यों को, जिनमें से अधिकांश ने ईश्वर के साथ संलाप किया हो, तो भी मृत्यु के बाद पूरी तरह समाप्त हो जाना है। वे अपने को इस केवल विचार से संतुष्ट कर सकते हैं कि यदि यह न्यायपूर्ण होगा कि वे बचे रहें, तो सम्भव हो सकता है कि वे बचे रहे और जहां तक यह प्रकृति के नियमानुसार होगा, तो प्रकृति वैसा ही करेगी। यह अंतिम वाक्य स्टोइकवाद के विशिष्ट लक्षण को प्रस्तुत करता है। जिसके अनुसार इस संसार को जैसा है. वैसा ही स्वीकार करना है और किसी ऐसे सुखद भविष्य की परिकल्पना नहीं बनाना है, जिसमें कि वर्तमान की बुराइयां समाप्त हो जाएगी, वरन् दृढ़ संकल्पपूर्वक वर्तमान जैसा है, वैसा ही ठीक है, यह मानना है। वस्तुतः हम यह कह सकते हैं कि स्टोइकवाद का मुख्य नैतिक सिद्धांत आधुनिक नैतिक धर्मशास्त्र के मुख्य तर्क के विपर्यय पर आधारित है। आरलिअस का कहना है कि यह सम्भव नहीं है कि इस विश्व की प्रकृति को या तो शक्ति की कमी के कारण या कुशलता की कमी के कारण इतनी बड़ी गलती से युक्त बनाया गया है कि अच्छे और बुरे लोगों के लिए शुभ और अशुभ अंधरूप में ही होते हों। यहां तक तो स्टोइक और ईसाई दार्शनिकों में एकता है, जबकि ईसाई मान्यता यह है कि भावी जीवन में वर्तमान जीवन के पुण्य और पाप को अंधाधुंध वितरण सम्बंधी अन्याय ठीक किया जाएगा। किंतु स्टोइक की मान्यता यह है कि जीवन और मृत्यु, सम्मान और अपमान, सुख
और दुःख आदि वस्तुएं वर्तमान में जिस अविवेकपूर्ण ढंग से बंटी हुई हैं, वे न तो शुभ हैं और न ही अशुभ हैं। परवर्ती प्लेटोवाद और नवप्लेटोवाद
अरस्तू के बाद के चार मुख्य सम्प्रदायों में प्लेटोवादी समुदाय ऐसा था कि जिसकी शिक्षाओं में वैयक्तिक आत्मा की अमरता के सिद्धांत को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त या। यह अपेक्षित था कि स्टोइकवाद में तुच्छ एवं घृणित भौतिक परिवर्तनों से युक्त इस वस्तुगत जगत् से मांगने की जो निवृत्तिमार्गी प्रवृत्ति पाई जाती है, वह इस सम्प्रदाय के परवर्ती इतिहास में और भी अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से स्पष्ट हुई है। वस्तुतः यह अपने गुरु (प्लेटो) की शिक्षाओं के एक अंग का