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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/110 किया गया था। ईसाई धर्म के अव्यवस्थित पूर्ववर्ती युग के यहूदी विचारकों के अनुसार नैतिक अंतर्दृष्टि को ऐसा देवीय विधान का ज्ञान माना गया था, जो कि मानवीय बुद्धि से परे ईश्वर से उत्पन्न होता है। मानवीय प्रज्ञा का कार्य केवल उन नियमों की व्याख्या करना है और उन्हें जटिल स्थितियों में लागू करना है। इस नियम के पालन करने के सामान्य प्रेरक ईश्वरीय वचन के प्रति विश्वास और उस देवीय विधान निर्माता के निर्णय का भय है, जिसने कि इस शर्त पर यहूदियों की रक्षा की प्रतीक्षा की थी कि वे उसकी आज्ञा का पालन करेंगे। नियम का ज्ञान जिस स्रोत के द्वारा उपलब्ध होगा, वह जटिल ही रहा और एक प्रगतिशील समाज के विधिशास्त्र के द्वारा अभिव्यक्त होता रहा। ऐसा माना जाता है कि मौलिक या आधारभूत नियम मोसेस के द्वारा लिखे गए एवं प्रवर्तित किए गए और दूसरे नियम परवर्त्ति पैगम्बरों (ईश्वर दूतों) के भावनापूर्ण कथनों के द्वारा अभिव्यक्त हुए। दूसरों ने इन्हें भौतिक रूप से बहुत ही प्राचीनकाल से पाया है या उन्हें मिले हैं। इस प्रकार निषेधाज्ञाओं और विधि-आज्ञाओं के निकाय की रचना यहूदी धर्म के द्वारा ईसाई धर्म को उत्पन्न होने के पहले ही हो चुकी थी और
अध्ययनशील लोगों तथा अध्येताओं की अनेक पीढ़ियों के द्वारा उनकी व्याख्याओं तथा पूरक नियमों की रचना के द्वारा बाह्य रूप में विकसित हो चुकी था। ईसाई धर्म ने लिखित ईश्वरीय विधान का प्रत्यय सच्चे इसराइल से उत्तराधिकार में पाया। वह सच्चा इसराइल, जो कि सम्भवतः अब सम्पूर्ण मानव जाति या सब देशों के कुछ चुने हुए लोगों को अपने में अंतर्निहित करता है, उसकी ईमानदारीपूर्वक स्वीकृति पर इसराइल के प्रति ईश्वरीय वचनों का मान आधारित है। यद्यपि पुराने हिन्दू-नियम के कर्मकांडात्मक भाग को और उसकी पूरक परम्परा एवं बहुश्रुत टीकाओं पर आधारित विधिशास्त्र को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया गया था, तथापि यह माना गया कि ईश्वर का नियम पवित्र यहदियों की पुस्तक में मौजद है। इस ईश्वर के नियम की ईसा की शिक्षाओं के उल्लेखों और उसके पटशिष्यों के द्वारा एक संघ व्यवस्था का निर्माण किया गया, जो कि मुख्यतया राज्य से भिन्न थी। प्रारम्भिक ईसाइयों की राजनीतिक जीवन से अलग करके तथा राजकीय भक्ति के रूप में थोपे गए मूर्ति पूजा सम्बंधी कर्मकांड का निर्णय करके तथा जो लोग ऐसा करते थे, उनके लिए दण्ड की व्यवस्था करके दोनों के अंतर को स्पष्ट एवं कठोर बनाया गया। जब एक ऐसे संघ का प्रसार होने लगा, जो कि प्राचीन समाज व्यवस्था का स्पष्ट विरोधी था, तो साम्राज्य-शासन के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा उत्पन्न हो गया। यह विभेद कन्सटेन्टिने के द्वारा ईसाई