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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/111 धर्म को राज्यधर्म स्वीकार कर लेने पर भी नहीं मिटाया जा सका। ईश्वरीय नियम
और उसके व्याख्याता, रोमन साम्राज्य के धर्म निरपेक्ष नियम और विधिवेत्ताओं से बिलकुल अलगहीरहे, फिर भी ईश्वरीय नियमसम्पूर्णमानवजाति के लिए पालनीय था। ईसाई धर्म संघ ऐसे व्यक्तियों का समुदाय था, जो कि उस ईश्वरीय नियम को पालन करने के लिए वचनबद्ध था तथा उसके पालन करने का अधिकारी अपने को मानता था, एक ऐसा धर्म-संघ, जिसमें पवित्र संस्कारों के आध्यात्मिक जन्म के बिना प्रविष्ट नहीं हुआ जा सकता था। ___. इस प्रकार नैतिकता और मानवीय विधानों का मुख्य अंतर नैतिकता के विधिक स्वरूप के आधार पर ही स्पष्ट किया जा सकता है। नैतिक विधान की चरम बाध्यता (अंकुश) अमर आत्मा को भावी में जीवन मिलने वाले असीम पुरस्कार अथवा दण्ड के रूप में मानी गई, लेकिन जब वे आत्मबलिदानी और धर्मवीर की अपरिवर्तनीय निष्ठा में अभिव्यक्त हुए इस आकारिक एवं नियामक पश्चाताप का धर्मत्याग से लेकर दूसरे जन्म तक विस्तार किया गया जबकि छोटे अपराधों के लिए संघ के सदस्यों को सामान्यतया अनुज्ञा प्राप्त सुखों का भी त्याग करना होता था, तथा साथ ही साथ वैयक्तिक एवं सामूहिक धर्म साधना में मौखिक रूप से पश्चाताप करना होता था। इस प्रकार तपस्या नैतिक नियमों की गिरजे सम्बंधी कालिक बाध्यता या अंकुश के रूप में आई। इन नैतिक बाध्यताओं का विकास स्वाभाविक रूपसे अधिक सूक्ष्म एवं सजग होता गया। इसके साथ-साथ ही अपराधों का विस्तृत वर्गीकरण और चर्च के सामान्य उपवासों और उत्सवों सम्बंधी नियमों की विवेचना आवश्यक हो गई थी। इस प्रकार आचरण सम्बंधी विधि-निषेधों और धार्मिक विधि-विधानों का गिरजे सम्बंधी विधिशास्त्र तैयार हो गया, जो कि उस यहूदी विधिशास्त्र के बहुत कुछ समान ही था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। इसी समय इस बाह्य कर्तव्यों की सूची को प्रमुख बनाने और विकसित करने की प्रवृत्ति का ईसाई धर्म में ही उसके प्रवर्तक की यहूदी विधानवाद के विरोध की अविस्मृत स्मृति के द्वारा समायोजन एवं विरोध किया गया । वस्तुतः इस विरोध का प्रभाव दूसरी एवं तीसरी शताब्दी के गूढ़ ज्ञानवादी सम्प्रदाय के द्वारा अतिरंजित रूप में एवं बेतुके ढंग से समझाया गया जो कि बाह्य कर्त्तव्य सम्बंधी नियमों को एक खतरनाक हास की दिशा में ले गया। कभीकभी (यदि परम्परागत विरोधियों के आक्षेप पूरी तरह से अमान्य न हों) तो आचरण की स्थूल अनैतिकता और उसी के समान दूसरी प्रवृत्ति गिरजे के इतिहास में दूसरे