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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/118 ईसाई एक लौकिक न्यायाधीश का ऐसा पद ग्रहण नहीं कर सकता, जिसमें कि उसे मृत्युदंड, हथकड़ी बेड़ी अथवा कैद की सजा देना होती है। लेक्टेन्टीअस का कहना है कि एक ईसाई को किसी को भी मृत्युदंड का दोषी नहीं ठहराना चाहिए, क्योंकि शाब्दिक हत्या भी उतनी ही बुरी है, जितनी कि वास्तविक हत्या। एम्ब्रोस जैसे भद्र लेखक का तो यहां तक कहना है कि ईसा की लम्बी यातनाएं इस बात की प्रतीक हैं कि अपनी आत्मरक्षा के हेतु भी हत्यारे आक्रामक का हनन करना हमारे लिए सम्भव नहीं है। ईसाई जन-साधारण की सामान्य बुद्धि क्रमशः इन अतिवादिताओं को दूर फें क देती है, यद्यपि खून नहीं बहाने की इच्छा बनी रही तथापि विधर्मियों के बढ़ते हुए भय के कारण उसे पूरी तरह क्रियान्वित नहीं किया जा सका। इसी प्रकार प्रारम्भिक ईसाईयों में न्यायिक कार्यों के लिए भी सौगंध खाने के प्रति अरुचि थी और इसका ईसा के कथनों की स्पष्ट व्याख्याओं के द्वारा समर्थन भी किया गया था, फिर भी जबकि ईसा की चौथी शताब्दी में चर्च, समाज के धर्म निरपेक्ष (लौकिक) संगठन के साथ औपचारिक रूप से आबद्ध हुआ, तो उसे जनता की आवश्यकताओं पर विचार किया गया परोपकारिता
ईसाई धर्म में सभी सद्गुणों के मूल में प्रेम की प्रतिष्ठा करके व्यावहारिक परोपकार के सभी रूपों के लिए प्रेरणा की गई है। सुसंस्कृत नैतिकता के सभी पक्षों पर ईसाई धर्म का यही महत्वपूर्ण प्रभाव देखा जाता है, तथापि यहां इस प्रभाव की सही स्थिति को स्वीकृत कर लेना कुछ कठिन है, क्योंकि यह गैर ईसाई नैतिकता में स्पष्ट रूप से उपलब्ध विचारों के अग्रिम विकास का ही सूचक है। जब हम सुकरात के परवर्ती विभिन्न नैतिक दर्शनों की तुलना करते हैं, तो हमें यह विकास स्पष्टतया परिलक्षित होता है। प्लेटो के द्वारा प्रस्तुत विभिन्न सद्गुणों की व्याख्या में परोपकार की कहीं चर्चा नहीं है, यद्यपि उसके लेखनों में दार्शनिक जीवन के एक अंग के रूप में मैत्री के महत्व का गहन बोध उपलब्ध होता है, जो कि विशेष रूप से दार्शनिक जीवन के गुरु और शिष्य के बीच स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाले गहन वैयक्तिक अनुराग के रूप में होता है। अरस्तू मैत्री के नैतिक मूल्य को स्वीकार करके इससे कुछ आगे जाते हैं, यद्यपि वे यह मानते हैं कि मैत्री के उच्चतम स्वरूप की उपलब्धि बुद्धिमान एवं भले सहयोगियों में ही हो सकती है। फिर भी वे पारिवारिक प्रेम को उसमें समाहित करने के लिए मैत्री-विचार को व्यापक बनाते है