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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/96 अरस्तू के परवर्ती सम्प्रदायों के विरोधों के कारण दष्टि से परी तरह ओझल हो गया था। इसके साथ ही उस श्रद्धामय निष्ठा के कारण, जो कि नवप्लेटोवाद के प्रति रखता है. मौलिक प्लेटोवाद और इस नव प्लेटोवाद के बीच के अंतर अधिक महत्वपूर्ण हैं। हम देखते हैं कि प्लेटो ने शुभ का वस्तुओं के वास्तविक सारतत्त्व के साथ तादात्म्य किया था और पुनः शुभ का उससे भी तादात्म्य किया था, जिसमें वह निश्चित रूप से कल्पनीय एवं बोधगम्य है। यह यह बताता है कि वस्तुओं की अपूर्णता या अशुभता इनकी वास्तविक सत्ता से भिन्न है और इसीलिए वे निश्चित रूप से विचार और ज्ञान के योग्य नहीं हैं। तदनुसार हम पाते हैं कि प्लेटो के पास इस यथार्थ इंद्रियगम्य जगत् में उसके लिए कोई तकनीकी पद नहीं है, जो कि उसे अमूर्त आदर्श विश्व की पूर्ण अभिव्यक्ति से रोकता है और जिसे अरस्तू के दर्शन में पूर्णतया आकारहीन यथार्थ के रूप में बताया गया है और इसीलिए जब हम प्लेटोवाद की तत्त्वमीमांसा से नीति की ओर आते हैं, तब हम पाते हैं कि उच्च जीवन की उपलब्धि मानवीय क्रियाकलापों और उन क्रियाकलापों के भौतिक परिवेश से विमुख होने पर ही संभव है; फिर भी यह इन्द्रियमय जगत् विधायक नैतिक विराग का विषय नहीं है। अपेक्षाकृत रूप से यह एक ऐसी वस्तु है, जिसे यथासंभव संगतिपूर्ण शुभ एवं सुंदर बनाने के लिए दार्शनिक पूरी तरह से सम्बंधित हैं। किंतु नव प्लेटोवाद में उस स्थिति की निम्नता का, जिसमें मानवीय आत्मा अपने शरीर के बंधन में पाती है, अधिक तीव्रता और दुःखदता के साथ अनुभव किया गया है, इसीलिए प्रथम पाप के रूप में आकारहीन पदार्थ की, जिससे दूसरा पाप शरीर उत्पन्न हुआ है और जिसके कारण आत्मा की उपस्थिति में सभी पाप होते हैं, की स्पष्ट स्वीकृति थी। तदनुसार हम यह कह सकते हैं कि प्लोटीनस का नीतिशास्त्र स्टोइको के नैतिक आदर्शवाद को प्रकृति से अलग करके प्रस्तुत करता है। मनुष्य का एकमात्र शुभ शरीर से भिन्न आत्मा के विशुद्ध बौद्धिक अस्तित्व में है। इस अवस्था में आत्मा बुराइयों और कमियों से पूर्णतया स्वतंत्र होगा। यदि वह अवस्था आत्मा की मौलिक सत्ता की स्वच्छंद क्रियाओं के द्वारा उपलब्ध होती है, तो कोई भी बाह्य या शारीरिक तथ्य उसके पूर्ण कल्याण को विधायक रूप में क्षति नहीं पहुंचा सकते हैं। प्लेटो के रिपब्लिक में विवेचित नागरिक सद्गुणों का केवल निम्नतम रूप प्रस्तुत है। ये सद्गुण उन पाशविक वासनाओं को मर्यादित करते हैं और उनका नियमन करते हैं, जिनकी आत्मा में उपस्थिति उसके शरीर के साथ संयुक्त होने के कारण है। दार्शनिक या उच्च प्रज्ञा, संयम, साहस और