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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 95 स्वाभाविक विकास ही था। प्लूटार्च (इस्वी सन् 48 से 120)
___ इस प्रकार जब हम प्लूटार्च की ओर आते हैं, तब हमें उसके सिद्धांतों में प्राचीन अकादमी के मानवीय जीवन के निम्न और उच्च घटकों के बीच नैतिक संगति बनाने वाले प्लेटोवादी सिद्धांत को न पाकर आश्चर्य नहीं होता है? प्लेटो की शिक्षाओं का वह पक्ष, जो अनुभूति के वास्तविक जगत् की अपरिहार्य अपूर्णताओं को प्रकट करता है, पुनः महत्त्वपूर्ण हो गया था। उदाहरणार्थ, प्लूटार्च प्लेटो के लाज के उन सुझावों को स्वीकार करता है
और उनका विस्तार करता है, जो यह बताते हैं कि यह अपूर्णता उस अशुभ विश्वात्मा के कारण है, जो कि शुभ के विरोध में है। प्लेटो के इस सुझाव पर बीच के इस अंतराल में कोई ध्यान नहीं दिया गया था। हम यह भी देखते हैं कि प्लूटार्च इसे जो मूल्य देता है, वह मात्र बौद्धिक धर्म के पोषण या सांत्वना के लिए नहीं है, वरन् आधिभौतिक संवादों की पुष्टि के लिए है, जो विशेष मनुष्यों और ईश्वर के बीच विशेष अवस्था में होता है, जैसे स्वप्न में, चमत्कारों के द्वारा या विशिष्ट चेतावनियों के रूप में और जिन्हें धर्मशास्त्र में स्वीकृत किया गया है। अंतर्विवेक की इस चमक को पाने के लिए वह यह मानता है कि आत्मा को संयम के माध्यम से इंद्रियपरता से विमुख और समाधि की अवस्था के लिए तैयार करना होगा। आत्मा और शरीर के बीच द्वैतभाव और शरीर से अलगाव के द्वारा ईश्वरीय या अर्थ ईश्वरीय प्रभावों की विशुद्ध प्राप्ति के लिए निवृत्तिमार्गी प्रयत्न पहली और दूसरी शताब्दी में होकर पुनर्जीवित पाइथोगोरियनवाद में भी पाए जाते हैं। वस्तुत: प्लूटार्च एवं अन्य विचारकों, जिनका वह प्रतिनिधित्व करता है, के विचार प्लेटोवादी सिद्धांतों पर नव पाइथोगोरियनवाद के प्रभाव के सम्मिश्रण से निर्मित हैं, किंतु वह सामान्य प्रवृत्ति जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं, एक बुद्धिसंगत दार्शनिक व्यवस्था की पूर्ण अभिव्यक्ति के साथ तब तक नहीं मिलती है, जब तक कि हम के महान् चिंतक प्लोटीनस की ओर नहीं आ जाते। प्लोटीनस (ईस्वी सन् 205 से 270)
___ प्लोटीनस का दर्शन प्लेटोवाद के उस तत्त्व का आश्चर्यजनक विकास है, जिसने मध्ययुग एवं आधुनिक युग के चिंतन को सम्मोहित कर रखा है, किंतु जो