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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 103
दिया ।
23. योगदान का अर्थ नैतिक महत्व नहीं समझना चाहिए । वस्तुतः यह योगदान का महत्व परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है, इस प्रकार, जब सामाजिक धनराशि के वितरण के प्रश्न पर प्रत्येक नागरिक का योगदान सामाजिक कोष में उसके द्वारा दिए गए योगदान पर निर्भर होगा। 24. क्योंकि वह विधायक नियमों के द्वारा ही पारस्परिक व्यवहार का निर्धारण करता है (अनु.)।
25. ‘संक्रमणक सम्प्रदाय', यह शब्द घूमते रहने से निकला है और अरस्तू के अनुयायियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है, क्योंकि अरस्तू जिस व्यायामशाला में व्याख्यान देता था, उसके छायादार क्षेत्रों में इधर-उधर घूमते हुए अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करता था।
26. मैंने 'मूल संस्थापक' शब्द का उपयोग इसलिए किया कि क्रिसीमस (लगभग 280 से 206 ई.पू.) ने स्टोइक सम्प्रदाय के विकास में जो योगदान दिया, वह झेनो की अपेक्षा कम महत्वपूर्ण नहीं था। एक कवि का कथन है कि क्रिसमस के बिना पोर्च का स्टोइकवाद नहीं होता । 27. देखिए, पृष्ठ 83
28. सुझाव के रूप में यह कहा गया है कि स्टोइकवाद के लिए सिनिकवाद ऐसा ही था, जैसे प्रारम्भिक ईसाई धर्म के लिए संन्यासवाद । यद्यपि इस तुलना पर अधिक बल नहीं देना चाहिए, क्योंकि कट्टर स्टोइक सिनिकवाद को अधिक पूर्ण मार्ग के रूप कभी नहीं मानते । यद्यपि वे यह मानते हैं कि सिनिकवाद सद्गुण की प्राप्ति का छोटा रास्ता है और एक सिनिक, जो मनीषी बन जाता है, उसे सिनिकवाद का पालन करना चाहिए। हम यह पाते हैं कि इपिकटैटस सुकरात और दूसरे नैतिक महान् व्यक्तियों को भी सिनिक नाम देता है।
29. पसंद, श्रेय (पसंदगी के योग्य) और शुभ के अंतर के लिए देखिए पृष्ठ 78-79, 30. स्टोइक इस बारे में पूर्ण सहमत नहीं हैं कि एक बार प्राप्त कर लेने पर सद्गुण अपरिवर्तनीय होता है, किंतु वे इस बारे में सहमत हैं कि उसे स्वयं बुद्धि से ही खोजा जा सकता है।
31. चारों सद्गुणों की स्टोइकों की परिभाषा में बहुत कुछ परिवर्तन हुए हैं। प्लूटोज़ के अनुसार झेनो ने न्याय को वस्तुओं के वितरण के विवेक के रूप में, मिताचार (संयम)