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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/64 निदेशनात्मक है, तथापि विशेष स्थिति में न्यायोचित भाग क्या होगा? अथवा न्यायोचित नुकसानी तथा न्यायसंगत मोल तोल क्या होगा? इसका निश्चय करने में यह कोई भी मार्गदर्शन नहीं देता है। अब ग्रीक नैतिक चिन्तन में बहुचर्चित इस प्रश्न पर भी विचार करना अपेक्षित है कि न्याय प्राकृतिक है या परम्परागत है? अरस्तू की मान्यता यह है कि नागरिक न्याय में इन दोनों तत्त्वों की उपस्थिति है, जैसा कि राज्य के नागरिकों को दिए गए वैधानिक अधिकारों की सुरक्षा में हम पाते हैं। चूंकि उन अधिकारों की सम्यक् परिभाषा के लिए उन बहुत सी बातों का निर्णय करना होता है, जिन्हें वह प्राकृतिक न्याय के रूप में अनिर्णित ही छोड़ देता है, किंतु अरस्तू न तो इन दोनों पक्षों को अलग करने का प्रयास करता है और न प्राकृतिक (स्वाभाविक) न्याय के उन सारभूत सिद्धांतों को प्रतिपादित करता है, जिनसे वैधानिक राज्य के नागरिकों के प्राकृतिक अधिकारों को निर्गमित किया जा सके। यद्यपि यह समानता की आवश्यकता को प्रतिपादित करता है तथा उस समानता को मात्र वैधानिक नियमों के अक्षरशः पालन से प्राप्त न्याय की अपेक्षा उच्च प्रकार की मानता भी है। जब लिखित वैधानिक नियमों की शाब्दिक व्याख्या, उन विशेष अप्रत्याशित घटनाओं के सम्बंध में दी जाती है, तो वे अपने प्रयोजन की सिद्धि में असफल हो जाती हैं, तब समानता पर आधारित न्याय ही उसका निर्देशन करता है।
____ अरस्तू की सद्गुण सम्बंधी विवेचना में आधुनिक पाठक को यह कमी सबसे अधिक खलती है कि उसने अपने लेखनों में अस्पष्ट रूप से उदारता के अपूर्ण स्वरूप के अतिरिक्त कहीं भी परोपकार का स्वतंत्र उल्लेख नहीं किया है। यद्यपि किसी रूप में मानव हृदय को एक दूसरे से जोड़ने वाले मैत्री भाव की विवेचना के द्वारा इस कमी की पूर्ति करने का प्रयास किया है। यह पारस्परिक अनुग्रह चाहे अपने कठोर अर्थ में सद्गुण न हो, किंतु यह मानवीय कल्याण का अवियोज्य अंग अवश्य है। राज्य के सदस्यों को एक सत्रता में साधने वाले के रूप में यह एक न्यायाधीश की अपेक्षा एक विधायक का विषय अधिक है। अपने सीमित एवं गम्भीर अर्थ में जिसे हमने विशेष रूप से मित्रता की संज्ञा दी है, यह मित्रता आनंद की पूर्णता के लिए
आवश्यक है, यहां तक कि दार्शनिक का आनंद भी उसके बिना पूर्ण नहीं होता है। मित्रता का सही आधार अच्छा है कि पारस्परिक स्वीकृति है। यद्यपि ऐसे भी पारस्परिक सम्बंध है जो मित्रता के नाम से जाने जाते हैं, किंतु केवल (पारस्परिक) उपयोगिता या सुखोपलब्धि पर निर्भर होते हैं। किंतु इनमें सच्ची मित्रता के लिए आवश्यक लक्षण