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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/68 तक सबल प्रतीत होता है, जब तक कि हम पूर्व दुराचरण पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं और उसके कारण की खोज करते हैं। अरस्तू के अनुसार यदि यह आचरण भी उद्देश्यपूर्ण था, तो वह भी उसी प्रकार किसी उद्देश्य से हुआ होगा जो कि शुभ प्रतीत होते हुए भी वस्तुतः शुभ नहीं था और यह आभास (प्रतीति) पुनः उसके पूर्व के कारण होगा। इस प्रकार जैसे जैसे उद्देश्य पूर्ण कार्यों की श्रृंखला के प्रारम्भ की खोज करते रहेंगे संकल्प की स्वतंत्रता मृग मरीचिका के समान आगे बढ़ती रहेगी और हम कहीं भी नहीं रुक सकेंगे (तार्किक दृष्टि से यह अवस्था दोष होगा)।
यह बता देना उचित होगा कि बुरी इच्छाओं की उत्पत्ति के सम्बंध में प्लेटो के सिद्धांत में जो असंगति हम पाते हैं, वे केवल उसके सिद्धांत के नैतिक पक्ष की दृष्टि से ही है, धार्मिक पक्ष की दृष्टि से नहीं है, किंतु इस दृष्टिकोण को अपनाने में ऐसी कोई कठिनाई नहीं है कि सामान्य विचार की शुद्ध शाश्वत सत्ता में, जिसका प्लेटो ने और बाद में अरस्तू ने ईश्वरीय सत्ता से तादात्म्य किया है, न तो कोई बुराई (पाप) ही है
और न उसका कोई कारण ही है, इसलिए पाप पूरी तरह से वास्तविक ऐन्द्रिक जगत् की अपरिहार्य स्थितियों में ही उत्पन्न होता है। मैं जो कहना चाहता हूं वह केवल यह कि प्लेटो संगतिपूर्ण ढंग से वैयक्तिक आत्मा में पाप (बुराई) की उत्पत्ति को नहीं मान सकता है। यदि हम यह भी कहे, जैसा कि शायद अरस्तू कहता था कि दुराचरण अपने प्रारम्भ में आवेगात्मक था और जैसे जैसे बुरी आदतें निर्मित होती गई. वैसे क्रमशः ऐच्छिक (संकल्पिक) बनता गया, तो भी यह बताना और भी सरल होगा कि
अरस्तू का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कोई भी दार्शनिक संगति को प्रस्तुत नहीं करता है, जिसके आधार पर आवेगात्मक अशुभ कार्यों का उत्तरदायित्व कर्ता पर डाला जा सके। क्योंकि जब भी वह मध्य की उस अवस्था का विश्लेषण करता है, जिसमें अनुचित कार्य यह जानते हुए कि यह अनुचित फिर भी किया गया, तो उसकी व्याख्या यही होगी कि उस क्षण में मन में वस्तुतः ऐसा ज्ञान नहीं हुआ था। आवेग या क्षुधा के कारण वह अचेतन अवस्था में ही हो गया था। स्टोइकवाद की ओर
___ सम्भवतया कुल मिलाकर अरस्तू के किसी नीतिशास्त्र के अतिरिक्त अन्य कोई ऐसी अधिकृत रचना नहीं मिलती है, जिसमें नीतिशास्त्र सम्बंधी प्रामाणिक और सूक्ष्म विचारों का प्रतिपादन किया गया हो। यद्यपि पाठक को यह रचना भी एक प्रकीर्ण और अपूर्ण ग्रंथ ही लगती है। आधुनिक यूरोपीय चिंतन
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