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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/74 फलस्वरूप ही हुई। यद्यपि जो प्राकृतिक है, वही प्रामाणिक है, यह कैसे हो सकता है? जब तक कि प्रकृति, जिसकी कि व्यवस्थित सृष्टि का मनुष्य एक भाग है, स्वयमेव किसी रूप में बौद्धिक न हो या दैवीय नियम और प्रज्ञा की अभिव्यक्ति न हो अथवा उसका मूर्त रूप न हो? दैवीय विचारों से युक्त एवं संयोजित सृष्टि की धारणा किसी न किसी रूप में उन सभी दर्शनों में पाई जाती है, जो कि सुकरात को अपने विचार परम्परा का प्रवर्तक मानते हैं। इन दार्शनिकों का एक महत्त्वपूर्ण वर्ग इस दृष्टिकोण को स्वीकार करता है कि यह दैवीय विचार ही इस विश्व की वास्तविक सत्ता है यह सर्वेश्वरवादी सिद्धांत स्टोइको के मानवीय सुख से पूरी तरह संगत है, किंतु वे द्रव्य को आध्यात्मिक रूप में स्वीकार करने में अक्षम हैं - यह मानकर दैवीय विचार प्राथमिक एवं विशुद्ध अत्यंत सूक्ष्म आग्नेय शक्तिरूपी भौतिक द्रव्य का ही एक कार्य है, वे अपने सर्वेश्वरवाद का भौतिक पक्ष प्रस्तुत करते हैं, जिसे उन्होंने हेराक्लाइट्स के सिद्धांत से ग्रहण किया है। वे यह मानते हैं कि भौतिक विश्व ज्यूस से विकसित हुआ है। वस्तुतः यह विश्व उस शाश्वत द्रव्य का रूपांतरण है, जिसमें अंततः वह उत्पन्न होकर पुनः मिल जाएगा। शाश्वत द्रव्य ज्यूस की दैवीय आत्मा की निर्मात्री शक्ति से चारों ओर से घिरा हुआ है और उसके दूरदर्शी नियमों के द्वारा पूर्णतया व्यवस्थित है।
विश्व के इस प्राथमिक तत्त्व को अपने भौतिक पक्ष की दृष्टि से मूलतः एक बहुत ही अधिक लोचपूर्ण पिण्ड माना गया था, जो कि बाद में घनीकरण के परिणाम स्वरूप असमान घनत्व और दबाव के चार तत्त्वों में विभाजित हो गया। सद्गुण के दूसरे इंद्रियानुभव से ज्ञातगुणों की व्याख्या पृथ्वी और पानी में और कुछ स्थितियों में आग और हवा में भी - ये दोनों तत्त्व सूक्ष्म और लोचपूर्ण है। विभिन्न दबाव की ईथर की धारा के प्रवाह के आधार पर की गई सबसे अधिक बेतुकी वैचारिक अस्पष्टता हमें यह लगती है कि ईथर प्रवाहों के अथवा अरस्तू की भाषा में कहें तो इन आकारों के मिलने से भिन्न-भिन्न प्रकार के अथवा अर्द्ध भिन्न प्रकार के पदार्थों की रचना हुई। इस प्रकार विश्व मूलतः दैवीय है और समग्र रूप से अपनेआप में पूर्ण है। इसके विभिन्न विभागों में जो कमियां दिखाई देती हैं उन्हें उस परम प्रज्ञा की दृष्टि से क्षणिक ही मानना चाहिए। वे यह बताती हैं कि कैसे विषमताओं को सम, अव्यवस्थित को सुव्यवस्थित और अप्रिय को प्रिय किया जाता है। भौतिक विश्व के इस ईश्वर परक दृष्टिकोण का स्टोइक नीतिशास्त्र पर दोहरा प्रभाव पड़ा। इससे प्रथम तो उनकी यह