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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 69 के निर्माण में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसके प्रभाव को हम सम्यक् प्रकार से इसी आधार पर समझ सकते हैं कि उसकी मृत्यु के पश्चात् पांच शताब्दियों तक उसके चिंतन का प्रभाव बना रहा, जबकि सुकरात की परम्परा से उत्पन्न अंध-सम्प्रदाय ग्रीक रोमन संस्कृति पर तब भी हावी थे। निस्संदेह अरस्तू के इस संक्रमणक सम्प्रदाय का सीमित प्रभाव अंशतः विशुद्ध चिंतनात्मक जीवन को उत्पेरित करने के आधार पर ही है, जो कि अरस्तू के नीतिशास्त्र को दूसरे परवर्ती सम्प्रदायों से अलग करता है। उस युग में जबकि दर्शन का नैतिक प्रयोजन पुनः, महत्वपूर्ण बन गया था, यह जन साधारण की नैतिक चेतना के अत्यधिक प्रतिकूल था। पुनः, अंशतः अरस्तू की विश्लेषणात्मक सुस्पष्टता मानव की नैतिक आकांक्षा और उन सिद्धांतों के समन्वय के हेतु सुकरात के प्रयासों में उठने वाली कठिनाइयों को विशेष प्रधानता दे देती है, जिनके आधार पर जन-साधारण के परस्पर निंदा और प्रशंसा या अनुमोदन करने में सहमत होते हैं तथा जिसके द्वारा उनके व्यावहारिक तर्क सामान्यतया निष्पादित होते हैं। सहज बुद्धि के इन दो पहलुओं के बीच होने वाले संघर्ष का निवारण बहुत ही गम्भीर था और मनुष्य जाति की नैतिक चेतना अरस्तू की अपेक्षाभी इसके प्रभावशाली समर्थन की अपेक्षा करती है। उसकी इस मांग की पूर्ति एक सम्प्रदाय के द्वारा की गई, जिसने जीवन के नैतिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण का कल्पना की पहुंच से पूर्णतः
और निश्चितता के साथ अलग कर दिया और जो व्यावहारिक अच्छाई को मनुष्य की आदर्श प्रज्ञा का सर्वोच्च परिणाम और अभिव्यक्ति मानता है, साथ ही जो सम्पूर्ण मानवीय जीवन को समाविष्ट करने वाले तथा नियमबद्ध विश्व प्रक्रिया के साथ उसके सम्बंध को अभिव्यक्त करने वाले सिद्धांत के द्वारा कर्त्तव्य के सामान्य प्रत्यय को स्पष्ट रूप से एक सम्पूर्ण एवं संगतिपूर्ण सिद्धांत के साथ बांधता है। उस पोर्च, जिसमें इसके मूल संस्थापक झेनो सदैव उपदेश दिया करते थे, के नाम पर यह सम्प्रदाय स्टोइक इसीलिए कहा जाता है। इस सम्प्रदाय के नैतिक सिद्धांतों का बौद्धिक उद्गम सिद्धांततः सिनिक्स के माध्यम से सुकरात तक खोजा जा सकता है। यद्यपि इनके दर्शन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसे अकादमीय-सम्प्रदाय के प्रथा का परिणाम माना जा सकता है। स्टोइक और सिनिक दोनों ही इस मौलिक सिद्धांत को सूक्ष्मता के साथ प्रतिपादित करते हैं कि मात्र यह व्यावहारिक बुद्धि ही है, जिसका वे सद्गुण से तादात्म्य करते हैं और जो आत्मा की ही एक स्थिति है या उसके अंतर्गत है 27। यही मानवीय कल्याण के लिए पर्याप्त है। यह सत्य है कि सिनिक्स वैराग्यमय