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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/60 (उच्छमता) मानते हैं। साहस की वह अधिक जागरुकता एवं सूक्ष्मता से विवेचना करते हैं। प्रचलित प्रशंसा और निंदा के आधार पर वे उन्हें महत्व देते हैं। अपने संकुचित एवं कठोर अर्थ में 'साहस' शब्द का समुचित प्रयोग युद्ध के संदर्भ में भी किया गया है। जहां मृत्यु वरेण्य हो, ऐसे प्रसंगों में मृत्यु का निर्भयतापूर्वक सामना करने में यह अभिव्यक्त होता है और ऐसे प्रसंग मुख्यतया युद्ध में ही आते हैं। निश्चित ही समुद्री तूफान में एक साहसी व्यक्ति निर्भय होगा, किंतु वह सही अर्थों में साहस' को अभिव्यक्त नहीं कर सकेगा, क्योंकि ऐसी संकटकालीन मृत्यु से वरेण्य या महान् कुछ भी नहीं है। पुनः, सम्यक् साहस वही होगा, जो कि एक सद्गुण हो और जिसमें साहसिक कार्य का चयन उसकी अपनी आंतरिक महानता या शुभता के लिए हुआ हो। सम्यक् साहस को नागरिक साहस' से भी पृथक् करना होगा, जिसका प्रेरक अपमान या पीड़ा का भय है। इसी प्रकार उसे अनुभव के आधार पर जाग्रत आत्मविश्वास या जोश के रूप में अज्ञान मात्र भौतिक साहस या भावावेश से भी पृथक् करना होगा, यद्यपि भावावेश उसकी कच्ची सामग्री है, जिसे उच्च लक्ष्य से युक्त करके सद्गुण के रूप में विकसित किया जा सकता है।
जिस प्रकार साहस का अर्थ युद्ध के संदर्भ में माना गया है, उसी प्रकार उस समय के उपयोग के अनुसार मिताचार (संयम) शब्द का प्रयोग भूख, प्यास और कामवासना सम्बंधी सुखों के संदर्भ में हुआ है। मिताचारी (संयमी) व्यक्ति इन क्षुधाओं या वासनाओं में अनुचित रूप से रत नहीं रहता है और इनके उपभोग का अति आनंद नहीं लेता है, चाहे वह उपभोग एवं तज्जनित संतुष्टि वैधानिक ही क्यों न हो। न वह अनावश्यक रूप से उन सुखों की चाह करता है और न उनकी अनुपलब्धि से दु:खी होता है। यह ध्यान देने योग्य है कि अरस्तू के अनुसार मिताचार वस्तुतः उस सद्गुण के संदर्भ में अनुचितता के अभाव पक्ष का सूचक होती है। क्षुधात्मक (आवेगात्मक) सुखों के प्रति अत्यधिक संयम मनुष्यों में मुश्किल से ही पाया जाता है। विशेष रूप से मिताचार के संदर्भ में पुनः यह भी ध्यान रखना होगा कि अपने सही अर्थ में मिताचार के सद्गुण में आत्म निरोध में अरस्तू ने महत्वपूर्ण अंतर माना है। सद्गुण वह है, जिसमें उचित कार्य का सम्पादन बिना आंतरिक संघर्ष के होता है, जबकि आत्म निरोध में कुपथगामी वासनाओं से संघर्ष करना होता है। मुख्यतया यह देखने में आता है, ग्रीक भाषा में 'अल्प निरोध'