________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 55 से गम्भीर एवं तात्विक विरोध को स्पष्ट करता है किंतु यह भिन्नता व्यावहारिक महत्त्व की नहीं है। फिर भी यह दैवीय और मानवीय शुभों की तुलना को कुछ अधिक बोधगम्य ही बनाती है। पुनश्च प्लेटो के समान अरस्तू का भी सुकरात के इस सिद्धांत से विरोध है कि सभी सद्गुण ज्ञान है यद्यपि यह विरोध प्लेटो की अपेक्षा मूलतः अधिक व्यापक नहीं है फिर भी अरस्तू ने इसे अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है। प्लेटो और अरस्तू दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की ऐच्छिक क्रिया का उद्देश्य वही होता है जो उसे शुभ दिखाई पड़ता है और वह पूर्ण सद्गुण अनिवार्यतया व्यावहारिक प्रज्ञा या नैतिक अंतर्दृष्टि से निगमित होता है। यदि वह प्रज्ञा या अंतर्दृष्टि यथार्थ या क्रियात्मक हो । यद्यपि दोनों यह स्वीकार करते हैं, कि नैतिक अंतर्दृष्टि की यह सत्यता केवल बुद्धि का कार्य नहीं है किंतु वह आत्मा के बौद्धिक
और अबौद्धिक या अर्द्ध बौद्धिक पक्षों के मध्य सम्यक् सम्बंध स्थापित करने पर निर्भर है और उसके अनुसार सद्गुण की शिक्षा के लिए स्वाभाविक अशुभसे निवृत्तियुक्त मन पर सजग अनुशासन की अपेक्षा केवल शाब्दिक आदेश कम महत्वपूर्ण है। निस्संदेह यही सिद्धांत अरस्तू के चिंतन में स्पष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान रखता है। निश्चित ही अरस्तू अपने गुरु प्लेटो की अपेक्षा यह कहकर एक कदम आगे रखता है। वह कहता है कि सत्कार्य का मुख्य गुण यही है कि वह स्वतःसाध्य के रूप में या केवल (अपने) सद्गुणात्मक सौन्दर्य के लिए ही चुना गया हो, किंतु उपरोक्त कथन में वह इस मान्यता को सूत्रबद्ध कर देता है, जिसकी उसके गुरु ने अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से उसे प्रेरणा दी थी। अंत में सुख और मानव कल्याण में सम्बंध के प्रश्न पर अरस्तू का दृष्टिकोण प्लेटो के उन विचारों से, जो कि उसके परवर्ती संवादों में मिलते * बहुत अधिक भिन्न नहीं है। यद्यपि वह सुखवाद विरोधी है और उस ऐकान्तिक दृष्टिकोण का विरोध करता है, जो कि स्पियुसीपस के प्रभाव से प्लेटो वाद में आया था। अरस्तू के दृष्टिकोण में सुख मानव कल्याण का प्राथमिक घटक नहीं है, किंतु उसका
क अभिन्न उपलक्षण (गौण गुण) है। मानवीय कल्याण वस्तुतः किसी प्रकार की उत्तम क्रिया को कौशल पूर्वक सम्पादित करना है चाहे उसका साक्ष्य या लक्ष्य अमूर्त सत्य हो या सदाचरण हो। ज्ञान और सद्गुण, उनसे प्राप्त होने वाले सुख के आधार पर बौद्धिक चयन के विषय नहीं है तो भी सुख इन सभी क्रियाओं का पोषण करता है
और एक प्रकार से उन्हें पूर्ण करता है जो किसी अनुपात में क्रिया की उत्तमता (अच्छाई) से भी अधिक श्रेष्ठ एवं वरेण्य है। निस्संदेह अरस्तू सुख की प्रकृति के सम्बंध में प्लेटो