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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 56
की आलोचना करते हैं। उनका तर्क यह है कि हम सुख को मात्र एक 'प्रक्रिया' या संतुष्टि के रूप में नहीं देखते हैं संतुष्टि सुख के भौतिक पक्ष को ही बताती है न कि उसके आत्मिक या मानसिक पक्ष को । किंतु इससे दोनों विचारकों की सामान्य नैतिक सहमति प्रभावित नहीं होती है। भ्रष्ट या अनैतिक सुख, वास्तविक एवं सच्चे सुख नहीं है। इस मूलतया प्लेटोवादी सिद्धांत को अरस्तू के विचारों में देखकर हम आश्चर्यचकित . रह जाते हैं।
मानव कल्याण के सम्बंध में अरस्तू का दृष्टिकोण
जब हम तीनों दार्शनिकों के नैतिक दर्शन की तुलना करते हैं, तो निम्न निष्कर्ष निकलते हैं। हमारी दृष्टि में मानवीय शुभ के प्लेटो और अरस्तू के दृष्टिकोणों में यदि कोई महत्वपूर्ण अंतर है, तो वह यह है कि तात्त्विक रूप से अरस्तू के विचारों की सुकरात नैतिक शिक्षाओं के विधायक पक्ष से अधिक निकटता एवं समरूपता है, यद्यपि उनका प्रस्तुतिकरण अधिक शास्त्रीय एवं पाण्डित्य पूर्ण ढंग से हुआ है और वे सुकरात के आधारभूत विरोधाभास का अधिक स्पष्ट रूप में निरसन करते हैं। यद्यपि सुकरातीय आगमन विधि प्लेटो के संवादों का महत्वपूर्ण लक्षण है किंतु उनकी नीतिशास्त्र की आदर्श विधि विशुद्ध रूप से निगमनात्मक ही है। वे नैतिकता के क्षेत्र
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सहज बुद्धि को एक ऐसा अस्थाई चरण और प्रारम्भ-बिन्दू मानते हैं जिसके द्वारा मन निरपेक्ष शुभ के ज्ञान की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सके। प्लेटो यह मानते हैं कि उसी निरपेक्ष शुभ के ज्ञान के द्वारा ही विशेष शुभों के प्रत्ययों को सही ढंग से समझा जा सकता है। अरस्तू नीतिशास्त्र में प्लेटो के अनुभवातीतता के सिद्धांत को समाप्त कर उनकी शिक्षाओं में मौलिक सुकरातीय आगमन विधि ” को शेष रखते है। यह आगमन विधि जोकि जनसाधारण के धारणाओं से निर्मित और उसी से सत्यापित भी है। वस्तुतः उनके लेखन के उतार चढ़ाव को भली भांति तब ही समझा जा सकता है कि जब हम उनकी लेखन शैली को सुकरातीय परिसंवाद के उस रूप में देखें जो कि अब एकालापी' है और विवाद चर्चा के स्थान पर व्याख्यान कक्ष का विषय बन गई। इस प्रकार सुकरातीय आगमन प्रणाली द्वारा वे हमे अपने नीतिशास्त्र सम्बंधी ग्रंथ में मानवीय शुभ या परमशुभ की ओर ले जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति किसी भी क्रियाकलाप को किसी परिणाम की प्राप्ति की अपेक्षा के साथ ही करता है चाहे वह परिणाम अपने आप के लिए हो (स्वतःसाध्य हो) या किसी अन्य साध्य का एक अन्य साधन हो । किंतु स्पष्ट बात यह है कि सभी कार्य केवल किसी साध्य के साधन के रूप में नहीं