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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/50 को दावतों के सुखों से वंचित कर दिया गया था, इस उम्र के पश्चात् ही नागरिक यात्रा के अधिकारी माने गए थे। पैंतीस वर्ष के पश्चात् अविवाहित रहने के लिए उन्हें दंडित किया जाता था। देवताओं के अस्तित्व का निषेध करना या यह मानना कि देवता बलिदान और उपहार से संतुष्ट होते हैं, अवैधानिक माना गया था। काव्य रचना और संगीत को भी कठोर शासकीय नियंत्रण (सेंसरशिप) का विषय माना गया था। महाभोज (दावतें) कठोर व्यय-नियामक नियमों के अधीन माने गए थे। विधान और पूरक आदेश- दोनों ही नागरिकों के लिए विधायक एवं नियम रक्षक की आप्तता के आधार पर बिना किसी के स्वीकृत किए जाते थे। केवल दार्शनिकों को ही विधानों की तार्किक समीक्षा के योग्य माना गया था। प्लेटो का सुख सम्बंधी दृष्टिकोण और उसका मानवीय सुख से सम्बंध
जब हम यह मान लें कि हम नागरिक सद्गुण और दर्शन-दोनों के स्वरूप का पूर्णरूपेण विवेचन कर चुके हैं, फिर भी यह प्रश्न शेष रह जाता है कि हमारा यह विवेचन कहां तक मनुष्य के परमशुभ का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करता है। यहां हमें गलती
और भ्रम से बचने के लिए यह ध्यान रखना होगा कि सुकरात और प्लेटो में इस सम्बंध में कभी भी कोई विवाद नहीं रहा है कि व्यक्ति का परम शुभ उसका अपना हित या कल्याण है । वस्तुतः सुकरात एवं प्लेटो-दोनों ने ही अनेक बार अपने तर्कों के द्वारा इसका समर्थन किया है। दोनों के अनुसार मुख्य व्यावहारिक प्रश्न, जिस पर अविश्वास और विरोध हो सकता है वह यह नहीं है कि मनुष्य का परम शुभ उसका स्वयं का कल्याण या हित है, वरन् यह है कि प्रज्ञा, सुख, सम्पत्ति और सम्मान आदि विशेष विषय, जिन्हें शुभ या वांछनीय माना जाता है, वे व्यक्ति के कल्याण में किस सीमा तक साधक हैं। सुकरात और प्लेटो-दोनों यह मानते हैं कि शुभ से सम्बंधित अन्य प्रश्नों के समान ही इस प्रश्न का भी सही उत्तर देने के लिए हमें शुभ के सामान्य प्रत्यय का यथार्थ तात्पर्य एवं स्वयं शुभ की वास्तविक प्रकृति को जानना होगा, किंतु जब प्लेटो का प्रत्ययवाद (आदर्शवाद) उसके स्वयं के मस्तिष्क में पूर्ण स्पष्ट हो गया
और वह स्वतः शुभ का अर्थ समझ गया, तो समग्र सुसंगठित विश्व का साध्य और सार-तत्त्व तथा प्रत्येक व्यक्ति के परम शुभ की खोज का विषय अनिवार्यतया उस तत्त्वमीमांसा सम्बंधी खोज, जिसके द्वारा वह विश्व का रहस्य पाना चाहता था, से भिन्न हो गया। यदि हम यह भी मान लें कि स्वतः शुभ या निरपेक्ष शुभ सभी वस्तुओं का अंतिम आधार है, तो भी वह क्या है। प्लेटो और अरस्तू-दोनों ही और यहां तक