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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 48
वही होगा, जिसके विभिन्न पक्ष एक दूसरे के साथ संगतिपूर्ण होकर कार्य करते हो । यह क्रिया तब तक सही ढंग से नहीं हो सकती है, जब तक कि तार्किक एवं नियामक पक्ष वस्तुतः प्राज्ञ न हो। पुनः शेष दो सद्गुण इस संश्लिष्ट आत्मा की प्रज्ञा से नियंत्रित क्रिया के ही दो भिन्न पक्ष हैं। साहस या सहनशीलता आत्मा के आवेगात्मक या संघर्षात्मक पक्ष की अच्छाई है। जब यह गुण बुद्धि के अधीन होता है, तो हमें यह बताता है कि जो वस्तुतः भयानक है उसी से भय खाना चाहिए, जबकि संयम या अनुशासन ईमानदारी (न्याय) से ठीक वैसे ही सम्बंधित है, जैसे कि उसका ही एक अंग हो। जहां साहस या सहनशीलता के गुणों का आत्मा के अबौद्धिक पक्ष या बौद्धिक पक्ष के प्रति समर्पण है, वहां संयम और अनुशासन विभिन्न सम्बंधित पक्षों में संगतिपूर्ण व्यवहार को सूचित करता है।
पोलिटिक्स नामक संवाद में प्लेटो ने साहस और अनुशासन ( संयम ) को दूसरे ढंग से विवेचित किया है। वहां प्लेटो उन्हें मानव के मौलिक स्वभाव का विरोधी बताते हैं, जिन्हें यदि अनियंत्रित छोड़ दिया जाए, तो वे नागरिकों
विरोधी वर्ग के द्वारा अतिवादिता के रूप में प्रकट होते हैं, यद्यपि एक प्राज्ञ राजनेता उन्हें उचित ढंग से समन्वित कर लेता है । पुनः प्लेटो ने अपने नीति सम्बंधी अंतिम लेख 'दि लाज' में नागरिकों के या लोकप्रिय प्रकार के साहस का स्थान निश्चित रूप से संयम की तुलना में निम्न माना है। इस लेख में आत्मा के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण परिपार्श्व में चला गया है और किसी रूप में संशोधित भी कर दिया गया है। यहां अबौद्धिक आवेगों में अंतर स्पष्ट किया गया है। यह अंतर दुःख से प्रत्युत्पन्न क्रोध, भय आदि आवेगों में और सुख के प्रत्युत्पन्न आवेगों में किया गया है, तथापि प्लेटो
चारों सद्गुणों को अपने सर्वोच्च रूप में एक दूसरे से अविभाज्य तथा परस्पराश्रित माना है और सद्गुणों के चतुर्विध वर्गीकरण को बिना किसी आधारभूत परिवर्तन के स्वीकार किया है।
पुनः हमें यह भी देखना होगा कि केवल सद्गुण का ज्ञान से तादात्म्य ही पर्याप्त नहीं है। वह अज्ञान के अतिरिक्त दुराचार का दूसरा कारण भी है। यह कारण है आत्मा का आंतरिक संघर्ष और जीवन की अस्तव्यस्तता, जिसमें अबौद्धिक आवेग विवेक को कुण्ठित कर देते हैं। प्लेटो ने अपनी परवर्ती नैतिक विवेचना में इसे स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है।
यदि हम बाह्य आचरण के उन विशेष रूपों को जानना चाहें, जिनमें