________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 47 संवेगों को एक दूसरे से विशेष रूप में सम्बंधित नहीं मानता है। उपरोक्त दोनों पक्षों का नैतिक मूल्य अलग-अल। है। दूसरा मानसिक पक्ष आत्म-संघर्ष में तीसरे बौद्धिक पक्ष का स्वाभाविक रूप से सहयोगी है और विशेष अभ्यास के द्वारा अपने (नैतिक) महत्त्व को अभिव्यक्त करने योग्य है, किंतु पहला क्षुधात्मक पक्ष अपेक्षाकृत रूप से निम्नस्तरीय है और बौद्धिक पक्ष से अनुशासित होने के अतिरिक्त उसका कोई सद्गुणात्मक (नैतिक) मूल्य नहीं है।
आत्मा के इस त्रिविध वर्गीकरण के आधार पर प्लेटो ने ग्रीक नैतिक चेतना में मुख्य रूप से स्वीकृत और परवर्ती युग में मुख्य सद्गुण के नाम से जानी जाने वाली चार प्रकार की अच्छाइयों को एक व्यवस्थित रूप प्रदान किया। ये मुख्य चार सद्गुण निम्न हैं।। (1) प्रज्ञा', (2) साहस या सहनशीलता, (3) संयम या अनुशासन, (4) न्याय या ईमानदारी । इन चारों में सबसे महत्वपूर्ण दो हैं- 1. प्रज्ञा और 2. न्याय (ईमानदारी)। प्रज्ञा अपने सर्वोच्च और आदर्श रूप में दार्शनिक के लिए अपेक्षित सम्पूर्ण ज्ञान की धारक है और आत्मा के सभी पक्षों का नियमन करती है एवं उन विविध पक्षों में संगति स्थापित करती है। प्लेटो के अनुसार सामाजिक सम्बंधों में न्याय का मूलाधार प्रज्ञा है। इसी आधार पर उसे सामान्य कहा गया हैइसे हम न्यायःभी कहते हैं। इस पद की विशेष व्याख्या सामाजिक सम्बंधों में अभियुक्त गुणों को ही प्रकट करती है। एक राजनीतिक समाज और उसके घटक व्यक्ति के पारस्परिक सम्बंध की प्लेटो की व्याख्या आंशिक रूप से उसके आत्मा के विविध पक्षों के विश्लेषण पर आधारित है। वह यह मानता है कि एक सुव्यवस्थित राज्य में प्रज्ञा से सम्बंधित एक शासक वर्ग होगा तो दूसरा साहस गुण से युक्त क्षत्रिय (संघर्ष करने वाला) वर्ग होगा, और दोनों ही वर्ग वणिकों के सामान्य समूह से अलग होंगे। समाज में वणिक-वर्ग का स्थान वही है, जो व्यक्ति के जीवन में क्षुधात्मक पक्ष के प्राबल्य के द्योतक है। इस वर्ग का कार्य समाज की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। इस वर्ग का राज्य से सम्बंध केवल उसकी आज्ञाओं के पालन करने तक ही है। ऐसे राज्य में व्यक्ति और समाज का हित राज्य के उपरोक्त विभिन्न घटकों की उन सामंजस्य-पूर्ण क्रियाओं पर निर्भर है, जिसमें प्रत्येक घटक अपना उचित कार्य करता है। सामाजिक क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से इसे न्याय कहा गया है। इसके अतिरिक्त हम यह भी देखते हैं कि प्लेटो के दर्शन में दो आधारभूत सद्गुण प्रज्ञा और न्याय अपने सर्वोच्च रूप में किस प्रकार एक दूसरे पर निर्भर हैं। एक प्राज्ञ आत्मा अनिवार्यतया