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किसें वस्तु की कमी नही रहेगी । मेने कह्या- स्वामीजी आपकी कृपा से सर्व अछी बात होवेगी । आप मेरे उपर कृपा दया राखजो । फेर मेरे को कहणे लागे - तुम कीसे मत कदाग्रही का संग मत करजो । जहां तेरे धर्म की वृद्धि होवे तिहां रहेजो । मेरी एहीज आज्ञा हे । .
इम कहीने दिनके तिसरे पहेर कालवस हो गये । फेर में 'केतलाक काल दिल्ली में रहीने दिल्ली से विहार करके पट्यालेके देस में आया । उहां मेनें घणा तप क्रीया करी । स्याला के महीने मे एक चादर राखुं । कबी नगन होके ध्यान लगावां । कबि बेला तेला जाव पंद्रा उपवास तांइ तप कीया । तथा कबी एक आंबिल कबी दो तीन कबी चार । एक बार कोटलेसहर में छ महीने लगें अभिग्रह कीया एक पात्रा गोचरी में रखणा । एक बार गोचरी जाणा । सो अभिग्रह सुखे सुखे पूरा हूया । अरु पडने लिखणे की खप करां । कथाबी करों । विहारबी करां । मेरे को गुरां की कृपा से चेले दो अछे घरां के मेरे पास हो गये । अरु लोकां में मेरी घणी मान प्रतिष्टाबी हो गइ । परंतु अब लग मेने जिनशासण का मर्म नही जाण्या । परंतु शास्त्र पढणे सें मेरी सरद्दा प्रतिमा मानने की हो गइ । फेर दिल्ली में मैंने चौमासा कीया । अरु रामलालजीकाबि चोमासा दिल्ली में था ।
उस के पास अंबरसरका ओसवाल ने दीक्षा लीधी धन कुटंब छोड के । उसका नाम अमरसिंघ हे । तिवारे रामलालजी के सरीर में खेद होय गया । रामलालबी मलुकचंद के टोले का साधु था । अपणे मत मे पंडित था । बत्तीस सूत्र का अपणे मत की आम्नाय करके जाणकार था । मे भी उसको सुख साता पूछने को गया था । उस वखत अंबरसींघजी कीसें गृहस्थी २पासों विपाक सूत्र ल्यायाथा । मेरे को कह्या- बूटेरायजी ! एह देखो विपाक सूत्र अछा हे । अरु मेने विपाक पढ्याबी नही था । सुण्या बी नही था । अरु मेरे पास परतबी नही थी । जब मेने परत विपाक की देखी तव गोतम स्वामीजी का पाठ मेंने देखा । तो मेने जाण्या-पूर्वे जो मेंने गुरु उपर तथा गुरु के लिंग उपर सनेह कीया था । सो मेरे को तत्काल स्वमेव सिद्धांत 'देखदे सार एही संभव होइ मुनि को मुखबंधके
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अमृतसर का । २ के पास से । ३ देखकर ।
मोहपत्ती चर्चा *
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