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विरला पुरुष जिण धर्मी होवेंगा । इसि विचार सिद्धांत पडे विना किम आवे ? इनो विषे कोइ मत तो साचा बी होवेगा ।
सर्व तो झूठे नही होवेगें । इकवीस हजार वरस श्रीवीरजीना तीर्थ 'चालसी । सो इनामें होवेगा । बीजा तो कोइ इहां दीसे नही । आप मती धर्म कीम पावे । परंतु मेरे को सूत्रा उपर सरधा रहि । फेर मेने जाण्या ए दोनो सूत्रा के पाठ दिखावदैहे । परंतु इनाका भेद सूत्र पढे बिना मेरे को नहि लभता । इस वास्ते मेरे को सूत्र पढने चाहिए । परंतु सूत्र कीस पासों पढिये ? गुरु बिना सूत्र कोन पढावे ? इस वास्ते मेरे को गुरु पास रहणा चाहिये । परंतु मेरे को सूत्र पढे विना गुरु कुगुरुकी खबर नहि पडती । इन्हाकी या अनेक सरदा हे । में किसको गुरु कहां अरु कीस को कुगुरु कहां ? परंतु में जाण्या भावेतो गुरु गौतमादिक हें । दरवे तो मेरे को जिसने मुंड्याहे सो गुरु हे । उनाके पास मेरे को जाणा योग्य हे । जोधपुर में चोमासा करके चोमासे उतरे पीछे में नागरमल्लजी के पास आया । दील्ली मधे मेरे को उनाने मिला लिया । किस वास्ते जो में उनाके साथ बिगाड के नही गया था । परंतु दोनो के अंदर तो गये "फिरगण । मन फट्या पिछे मिलणा दुस्कर हे । परंतु में "दरबे घणी बिने भक्ति आज्ञा पाली । परंतु मेरे को दिल लगाय के पढावे नहि । अरु उनाकी वृद्ध अवस्था थी । अरु रोगी सरीर था । में दीन रात उनाकी टहेल मे रहेया । परंतु किसे वखत काम नही होवे तो जब पढ़ा लिखा । रात को बोल विचार सीखा । तथा साधु का विहार पूछां । जब ओसर देखां दिन को दसवैकालिक सीखां । अरु जब अवसर पावा तब एक दो गाथा लिखबि लेवा । इम करतां तीन वर्स विदीत हो गया । दसवैकालिक मेरे को आय गइ । और मेरे को बोल विचार बी केतलेक आ गये । संवत १८९३ के साल नागरमल्लजी काल करणो लागा । उनाने तेरे को पांच दस परतां दीयां । और पोथी पन्नेका मालक आपणे बड़े चेलेकं कीया । परंतु आपणे चेले को कह्या - मेनें पोथी पानां और सर्व वस्तु मेरे को दे देइ छ । बूटेराय कों में कुछ दीया नही । परंतु बूटेरायजी तुमे सुषे रहजो । धर्म मे उद्यम करजो । तेरे को १ चलेगा । २ मिलता । ३ अब । ४ मनोभेद हो गया । ५ अब खूब विनय भक्ति आज्ञा
पाली । ६ व्यतीत हो गये ।
मोहपत्ती चर्चा *
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