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आचार्य कहते हैं कि देखो ऐसे मिथ्या तपके करनेसे जब स्वर्ग मिलता है तव सच्चा। पु. भा. तप करनेसे जो फल मिलै उसका कहना ही क्या है, अपूर्व फल मिल सकता है। ... 8. इस भरतक्षेत्रमें अयोध्यापुरी कपिल नामका ब्राह्मण रहता था उसकी काली
अ. २ नामकी स्त्री थी उन दोनोंके घर. वह देव स्वर्गसे आकर जटिल नामका पुत्र होता हुआ। और पूर्व संस्कारसे मिथ्यामतमें लवलीन वेद स्मृति आदि शास्त्रोंको जानकर समूढ जनोंसे नमस्कार किया गया संन्यासी होता हुआ और कल्पित मिथ्यामार्गको
पहलेकी तरह प्रगट करता हुआ। फिर अपनी आयुके क्षय होने पर मरके कायक्लेश
तपके प्रभावसे सौधर्म नामके पहले स्वर्गमें देव होता हुआ । वहां पर दो सागरकी ४ आयु तथा थोड़ीसी विभूति पायी । देखो आश्चर्यकी वात कि मिथ्याधुद्धि पुरुषोंका || ४ खोटा भी तप संसारमें निष्फल नहीं जाता है, सुतपका तो कहना ही क्या है।
- इसी रमणीक अयोध्यापुरीके स्थूणागार नामक नग्रमें भारद्वाज नामक ब्राह्मण था और उसकी पुष्पदंता नामकी प्यारी स्त्री थी। उन दोनोंके वह देव ६ स्वर्गसे चयंकर पुष्पमित्र नामका पुत्र हुआ। उसने पूर्व संस्कारसे खोटे मतोंके कुशास्त्रोंका अभ्यास किया ! फिर मिथ्यात्व कर्मके उदयसे मिथ्यांमतोंमें मोहित हुआ। ॥९॥ पहले भेषको स्वीकार कर सांख्यमतके प्रकृति बगैरः पच्चीस तत्वोंका उपदेश करता
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