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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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नहीं जा प्रवित विषै परनामाकी शुद्धता बधै अर ज्ञानका क्षयोपशम बधै सोई आचरन आचरै । ज्ञान वैराग्य आत्माका निज लक्षन है ताहीको चाहै है । और अवै मुनिराज कैसै ध्यान विषै स्थिति है। अरु कैसे विहार करै है अर कैसे राजादिक आय बंद हैं सोई कहिए है । मुनि तौ वन विषै वा मसान विषै वा पर्वतकी गुपय विषै वा पर्वतकी सिखिर विषै वा सिला विषै ध्यान दिया है। अर नगरादिक सौ राजा विद्याधर व देव बंदवाणै आवै है। अर मुन्याकी ध्यान अवस्था देषि दूर थकी नमस्कार करि उहा ही खड़ा रहै है । अर कैई पुरुषाकै यह अभिलाषा वर्ते है । कदि (कब) मुन्याका ध्यान खुलै अर कदि मैं निकट जाई प्रश्न करौं । अर गुरांका उपदेशनै सुनौ अर प्रश्नका उत्तर जानों अर अतीत अनागतके पर्यायोंकू जानों । इत्यादि अनेक प्रकारका स्वरूप ताकौ गुरांकी मुखथकी जान्या जाय : ऐसे कई पुरुष नमस्कार करि करि उठनाई है । अर कैई ऐसा विचार है सो म्हैं मुन्याका उपदेश सुन्या विना घर जाई कांई करा । म्है तौ मुन्याका उपदेश विना अतृप्त क्षा । अरु हाकै नानातरहका संदेह औ । अर नाना तरैका प्रश्न छै । सो या दयालु गुरां विना और कौन निवारन करै । ती हे भाई म्हैनौ जेतै मुन्याका ध्यान खुलैते तैउभाईक्षा। अर मुन क्षै सो परम दयाल : मुन अपना हेत नै छोड़ि अन्य जीवानै उपदेश दे हैं । तीस्यूं मुन्यानै अपना आगमन जनावो मति, अपना आगमन करि कदाच ध्यान सौ चलसी तौ अपना अपराध लागि तीसं गोप्य ही रहै है । अर कैई परस्पर ऐसे कहैं देषौ भाई मुन्याकी काई दशा है । काष्ठ पाषाणका