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धर्मशास्त्र का इतिहास दि बुद्धिस्ट्स', डा० बी० भट्टाचार्य, पृ० २६०-२७२; 'दि कल्ट आव दि बुद्धिस्ट सिद्धाचार्यज', पृ०
२७३-२७६, श्री पी० वी० वापट । (३७) 'लाइट ऑन दि तन्त्र', एम० पी० पण्डित कृत (गणेश एण्ड कम्पनी, मद्रास १६५७) । यह छोटी पुस्तिका
है; ५४ पष्ठों में; ५५-७१ पष्ठ में कछ टिप्पणियां हैं जिनमें लेखक की अपनी कोई बात नहीं है। इस ग्रन्थ का तीन-चौथाई भाग बडोक(विशेषत'शक्ति एवं शाक्त' से). श्री अरविन्द एवं श्री कपाली शास्त्री से उधार लिया गया है। यत्र-यत्र बड़े साहस के साथ कुछ अप्रामाणिक बातें दी हुई हैं, यथा-'तान्त्रिक विचारों एवं कृत्यों के मूल सत्यों के आधार पर आज के हिन्दू समाज का ढांचा खड़ा है (१० ३६) प्रस्तुत लेखक ऐसी भ्रामक धारणा का घोर विरोध करता है । यत्र-यत्र लेखक ने तन्त्र की कुछ भ्रान्ति
पूर्ण एवं अनैतिक बातों की भर्त्सना भी की है, यथा १० ३६ एवं २१ में। (३८) 'हिस्ट्री आव फिलॉसफी, ईस्टर्न एण्ड वेस्टर्न', डा. एस. राधाकृष्णन द्वारा सम्पादित, जिल्द १, पृ०
४०१-४२८; 'एक्पोजीशन आव शाक्त बीलीफ्', म० म० गोपीनाथ कविराज (१६५३) । (३६) 'योग, इम्मारटैलिटी एण्ड फ्रीडम', मिसिया एलियाडे कृत, विलार्ड ट्रास्क द्वारा फ्रेंच से अनूदित (राउटलेज,
केगन, पॉल, लन्दन, १६५८), पृ० २००-२७३, जहाँ 'योग एण्ड तन्त्रिज्म' पर निबन्ध है। (४०) 'तिबेतन बुक आव दि डेड', डा० डब्लू. वाई० इवांस वेंट्ज़ द्वारा (तीसरा संस्करण, आवसफोर्ड
यूनि० प्रेस, १६५७) । (४१) 'तिबेतन योग', बर्नार्ड ब्रोमेज़ द्वारा (दूसरा संस्करण, १६५६, एक्वैरियम प्रेस) । इसमें तिब्बतियों के
जादू एवं धार्मिक आचारों का उल्लेख है और उन मन्त्रों एवं प्रयोगों की चर्चा है जिनसे अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं ।
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