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धर्मशास्त्र का इतिहास
वास्तव
कतिपय बुद्धिवादी सदा पाये जाते रहे हैं। इस विषय में देखिए इस महाग्रन्थ का मूल खण्ड २, पृ० ३५८ - ३५६, टिप्पणी ८७५ एवं खण्ड ३, पृ० ४६-४७५ टिप्पणी ५७ ( लोकायत एवं उनके मत आदि । . बहुत-से बुद्धिवादियों की धारणा है कि ईश्वर के अस्तित्व के विषय में कोई प्रमाण नहीं है, वे आत्मा के विषय में भी ऐसी ही वारणा रखते हैं, वे अमरता में विश्वास नहीं करते और न यही स्वीकार करते कि इस विश्व
मनुष्य की बुद्धि से बढ़कर कोई अन्य उच्च बुद्धि है, वे इसे नहीं मानते कि इस विश्व के पीछे कोई विशिष्ट उद्देश्य या प्रयोजन है, उनका विश्वास है कि सभी धर्मों में कुछ-न-कुछ सत्य है जो अत्यधिक भ्रम से युक्त है । बुद्धिवादियों (तर्कवादियों) का कथन है कि उन्हें इस बात को सिद्ध करने के लिए विवश नहीं करना चाहिए कि ईश्वर नहीं है (जो कि एक अस्वीकारार्थक या अभावात्मक प्रस्ताव है ), प्रत्युत अस्तित्ववादियों को ही यह सिद्ध करना है कि ईश्वर है अर्थात् उसका अस्तित्व है और वह सर्वशक्तिमान् एवं सर्वज्ञ है ( जो एक भावात्मक प्रस्ताव अथवा प्रमेय या प्रतिज्ञा है ) । उनका कथन है कि ईश्वर को क्रोध, प्रेम या करुणा नामक गुणों से युक्त करना ईश्वर के सर्वशक्तित्व को निर्विवाद रूप से समाप्त कर देना है । इस विश्व में दुराचार की जो समस्या विराजमान है, वह बुद्धिवादियों की दृष्टि में, ईश्वर को अच्छा, दयालु, सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान् मानने के मार्ग में एक बाधा है । नास्तित्ववादी ( अथवा बुद्धिवादी) अस्तित्ववादी के साथ सम्भवतः यह मान लें कि मनुष्य एक सत्ता के रूप में अपने से उच्च उस सत्ता पर निर्भर रहता है जो उसे मार्ग-निर्देशन देने में तथा आज्ञा अथवा निर्देशन के उल्लंघन पर दण्ड देने में समर्थ है। बुद्धिवादी अथवा तर्कवादी का दृष्टिकोण है कि मानव किसी प्रकार के ऐसे समुदाय या ऐसे समाज में रहता है या सत्ता रखता है जो उससे अपेक्षाकृत अधिक महान् है । यह दृष्टिकोण इस बात की ओर संकेत करता है कि ईश्वर-पूजा के स्थान पर मानव-समुदाय या संयुक्त मानव-शक्ति की पूजा होनी चाहिए । ईश्वर के स्थान पर किस मानव समुदाय को रखा जाय ? क्या यह सम्पूर्ण मानव समाज ( जिसमें मनुष्यों की संख्या आज लगभग तीन अरब तक है ) होगा या इसके कुछ बड़े या छोटे दल ? आज स्पष्ट रूप से दो दल हैं जिनमें विचारधारा-सम्बन्धी संघर्ष है, यथा-- साम्यवादी दल (गुट) जिसके नेता रूस एवं चीन हैं, तथा पूँजीवादी दल जिसका नेता अमेरिका है । इंग्लैण्ड तथा यूरोप के कुछ अन्य देश तथा एक तीसरा दल, जो तथाकथित तटस्थ देशों का दल कहा जाता है, जिसमें भारत भी एक है, और जो अभी उतना सुव्यवस्थित नहीं है, इन दोनों दलों में किसी में सम्मिलित नहीं हैं ।
वर्तमान काल में साम्यवाद सचमुच एक प्रकार की पूजा है, अर्थात् ईश्वर-पूजा के स्थान पर मनुष्य या मनुष्यों की पूजा है । यह बात स्वीकार्य होगी कि सम्भवतः वर्तमान रूस की जनता भौतिक आवश्यकताओं के विषय में जारों के काल के प्रजाजनों से कहीं अधिक समृद्ध एवं उत्तम जीवन बिता रही है। जनता में साम्यवाद के प्रति भक्ति है । किन्तु यह भक्ति वास्तव से अधिक दिखावटी है, शीघ्र ( क्षिप्र ) लाभों की आशा पर या अविलम्ब दण्ड के भय पर आधृत है तथा शिक्षा एवं वातावरण पर राज्य के कठोर नियन्त्रण का प्रतिफल या परिणाम है । निम्नोक्त शब्दों में साम्यवादियों का नारा बड़ा आकर्षक है-- "विश्व के श्रमिको ! संयुक्त होओ,
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५. लोकायत या लौक्यायतिक के लिए देखिए जयराशिभट्ट कृत 'तत्त्वोपप्लवसिंह' नामक ग्रन्थ ( गायकवाड़ ओरिएण्टल सीरीज़, बड़ोदा) । 'लोकायत' शब्द ' उक्थादि गण' में आया है ( पाणिनि ४ । २६०, 'ऋतूक्थादिसूत्रान्ताट् ठक्' ) । देखिए डा० दक्षिणारञ्जन शास्त्री कृत 'शार्ट हिस्ट्री आव इण्डियन मेटिरियलिज्म' (कलकत्ता, द्वितीय संस्कयण, १६५७ ) ।
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