Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 5
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 392
________________ कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त ३७५ यह बड़े आश्चर्य की बात है कि ड्यूशन महोदय ने सनत्कुमार एवं नारद के संवाद को अपने इस तर्क की सिद्धि के लिए प्रयुक्त किया है कि क्षत्रिय लोग ही वेदान्त के महान् सिद्धान्तों के मौलिक उद्भावक थे। उन्होंने छा० उप० ( ७ ) का सहारा लिया है, जहाँ आया है कि नारद सनत्कुमार के पास गये और प्रार्थना की- 'महोदय, मुझे पढ़ाइए । सनत्कुमार ने उनसे कहा - ' बताइए, आप कितना जानते हैं, तब मैं बताऊँगा कि उसके आगे क्या है। नारद ने बताया ( छा० उप० ७।१-२ ) कि मैंने चार वेदों, इतिहास-पुराण का अध्ययन कर लिया है और उन्होंने विद्याओं की सूची उपस्थित की जिसमें देवविद्या, ब्रह्मविद्या, क्षत्रविद्या, नक्षत्रविद्या सम्मिलित थीं । नारद ने स्वीकार किया कि मुझे केवल मन्त्र ही ज्ञात हैं, आत्मा के बारे में नहीं जानता । उन्होंने कहा, 'मैंने आप के समान लोगों से सुना है कि आत्मविद् दुःख को जीत लेता है। मैं दुःख में हैं, भगवन्, दुःख से पार होने में मेरी सहायता अवश्य करें ।' सनत्कुमार ने कहा, 'आपने जो कुछ पढ़ा है, वह नाम मात्र है, कुछ नाम से बढ़ कर भी है । सनत्कुमार ने नाम से बढ़कर वाणी पर ध्यान करने को उत्तम कहा और शिक्षा दी कि मन वाणी से उत्तम है और आगे बहुत-सी बातों का उल्लेख किया जो अपने पूर्ववर्ती से उत्तम हैं, और इस प्रकार वे 'भूमन' ( परमात्मा) कुछ की उद्भूति होती है । अन्त में ( छा० उप० ७।२६।२) आया हैसब कुछ दिखाया, जिसके दोष जड़ से नष्ट हो गये हैं और जो अविद्या के स्कन्द कहते हैं । का उल्लेख किया है, जिससे सभी भगवान् सनत्कुमार ने नारद को ऊपर है; उसे लोग ( सनत्कुमार ) उपर्युक्त लम्बे वचन में ऐसा कहीं भी नहीं आया है कि सनत्कुमार एवं नारद ब्राह्मण थे या क्षत्रिय । संस्कृत साहित्य में स्कन्द को युद्ध का देवता ( गीता, १०।२४, सेनानीनामहं स्कन्दः ) कहा गया है और वनपर्व ( २२/२२-२३ ) में उसे देवों की सेनाओं का सेनापति कहा गया है तथा शान्तिपर्व ( २७५ = २६७) चित्रशाला संस्करण) में आया है कि लोक की उत्पत्ति एवं प्रलय के ज्ञान की प्राप्ति के लिए नारद देवल के पास गये । इससे ड्यूशन महोदय खट से इस निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं कि सनत्कुमार क्षत्रिय थे और नारद ब्राह्मण | महाभारत, मनुस्मृति एवं पुराणों में उन्हें वर्ण या जाति के ऊपर अर्ध दैविक ऋषि कहा गया है । गीता (१०।१३ ) ने नारद को देवर्षि कहा है, वायुपुराण ने पर्वत एवं नारद को कश्यप के पुत्रों के रूप में तथा देवर्षियों में गिना है ( ६११८५ ) । मनुस्मृति (१।२५ ) ने नारद को प्रथम दस प्रजापतियों में परिगणित किया है। ब्रह्म पु० ( १।४६-४७) ने स्कन्द एवं सनत्कुमार को ब्रह्मा का पुत्र कहा है । नारदीय पु० ( पूर्व भाग २३) ने सनक, सनन्दन, सनत्कुमार एवं सनातन को ब्रह्मा का मानस पुत्र कहा है और सनत्कुमार को ब्रह्मवादी कहा है, जिन्होंने नारद को सभी धर्मों का ज्ञान दिया था। वामन पु० (६०१६८-६६ ) ने इन चारों को धर्म एवं अहिंसा का पुत्र तथा योग शास्त्र का व्याख्याता कहा है । इन सभी बातों से बढ़ कर कूर्म पु० ( ११७१२०-२१ ) में आया है कि ये चारों ऋतु के साथ विप्र ( ब्राह्मण ), योगी एवं ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं । सनत्कुमार को शाब्दिक या लाक्षणिक रूप से स्कन्द कहा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने अविद्या को उसी प्रकार आक्रमण करके जीत लिया जिस प्रकार स्कन्द देवता ने असुरों की सेनाओं को परास्त किया था । ૨૪ २४. अग्रे ससर्ज व ब्रह्मा मानसानात्मनः समान। सनकं सनातनं चैव तथैव च सनन्दनम् । ऋतुं सनत्कमारं च पूर्वमेव प्रजापतिः । पञ्चैते योगिनो विप्राः परं वैराग्यमाश्रिताः । । कूर्मपु० ( १ | ७|१६:२१) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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