Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 5
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 443
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास कुछ राज्यों ने भूमि का सीमा निर्धारण किया है। सूखी (बिना सिंचाई की ) या सिंचाई वाली भूमि के आधार पर व्यक्ति को कतिपय एकड़ से अधिक भूमि रखने का अधिकार नहीं दिया गया है । अभी यह स्थिति सभी राज्यों में नहीं स्थापित की जा सकी है। किन्तु इस प्रकार के कानून को लोग पक्षपातपूर्ण ठहराते हैं, क्योंकि सामान्य जनता की दृष्टि में भूमि सम्बन्धी सीमा निर्धारण तो स्थापित कर दिया गया है, किन्तु बड़े-बड़ े उद्योगपतियों की अन्य प्रकार की सम्पत्तियों का सीमा निर्धारण अभी नहीं किया गया है, जो सचमुच अन्यायपूर्ण एवं पक्षपातपूर्ण है। तर्क यह दिया जाता है कि बड़े-बड़े, सेठ साहूकारों आदि को आय - कर तथा अन्य कर देने पड़ते हैं, किन्तु कृषि करने वाले कहते हैं कि वे भी कर देते हैं और महँगी से सामानों के मूल्य बहुत ऊँचे उठ गये हैं । ४२६ हमारे संविधान की धारा ४७ में ऐसी व्यवस्था की गयी है कि राज्य लोगों को पौष्टिक पदार्थ की उपलब्धि कराये, लोगों के सामान्य जीवन स्तर को ऊपर उठाये लोगों का स्वास्थ्य सुधारे और ऐसे पदार्थों, द्रव्यों एवं वस्तुओं का प्रयोग निषिद्ध करे जो स्वास्थ्य के लिए हानिकर हैं। कुछ राज्यों ने मादक द्रव्यों एवं पदार्थों के सेवन के विरोध में कानून नहीं बनाये और न कोई योजनाएँ ही उपस्थित कीं, क्योंकि ऐसा करने से राज्य की आय पर दो प्रकार से प्रभाव पड़ता था, यथा- मादक वस्तुओं पर लगाये गये कर की हानि तथा लोगों को मादक द्रव्यों के निर्माण से रोकने के लिए एक लम्बे कर्मचारी दल की स्थापना का व्यय । धारा ४५ के अनुसार चौदह वर्षों तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था तो नहीं की गयी, किन्तु कुछ राज्यों में धारा ४७ को पूर्णरूपेण कार्यान्वित करने का प्रयास किया गया । सारे भारत में मद्य निषेध का कानून नहीं अपनाया गया । कहीं एक पाप अपराध है तो वही दूसरे राज्य में पालित व्यवस्था है ! एक नगर में लोग नशे में झूम रहे हैं तो दूसरे स्थान में लोगों के हाथों में हथकड़ी है । सम्भवत: निषेधाज्ञा निकालने वाले मानव मनोविज्ञान की एक प्रमुख बात भूल जाते हैं। जब किसी वस्तु का निषेध किया जाता है और वह बहुत कम मात्रा में प्राप्त होने लगती तो लोग कानून तोड़ कर उसे प्राप्त करना चाहते हैं । ऐसी स्थिति में अत्यन्त गन्दे स्थानों में बनाये गये मादक द्रव्यों का गुप्त व्यापार चलने लगता है और जानते हुए भी लोग पुलिस को समाचार नहीं देते, क्योंकि उन्हें इसका डर रहता है कि सेवन करने वाले एवं बनाने वाले लोग उनकी हत्या कर देंगे । मादक द्रव्यों के व्यवहार पर निषेध लगाने से भयंकर परि णाम उपस्थित हुए हैं। घुड़दौड़ एवं दावँबाजी पर प्रतिबन्ध नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से धनिक लोग सरकार से रुष्ट हो जायेंगे । मद्यपान एवं द्यूत वेदकाल से ही अपराध एवं पाप माना जाता रहा है (ऋ० ७ ८६।६))। अतः लोगों में इस प्रकार के दुराचरणों को रोकने के लिए मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए और क्रमशः पीने के आचरणों में कमी का उपदेश करते रहना चाहिए, नहीं तो दमन करने से अत्यन्त भयंकर दुर्गुणों के उत्पन्न हो जाने का भय है । दहेज प्रथा के विरोध में सन् १६६१ में एक कानून बना जो वास्तव में, एक प्रकार से व्यर्थ है । जहाँ रुपये के लेन-देन को अपराध माना गया है, वहीं भेंट, अलंकार, वस्त्र आदि को वैध माना गया नाम पर सहस्रों रुपये दहेज के रूप में लिये दिये जा रहे (१६६५ में) चार वर्ष हो गये, किन्तु कोई भी मुकद्दमा । इसका परिणाम सामने है । भेंट और दान के और व्यवस्था ज्यों-की-त्यों बनी पड़ी है । आज अदालत में नहीं आया । बहुत ही संक्षेप में संविधान से सम्बन्धित कतिपय बातों पर ऊपर प्रकाश डाला गया है । देश की आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति के लिए पञ्चवर्षीय योजनाएँ लागू की गयी हैं । उन्नति एवं विकास के लिए हमने जो लम्बी-लम्बी योजनाएँ बनायी हैं, उनके कार्यान्वयन में विदेशी पूँजी लगायी गयी है । हम पर कतिपय देशों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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