Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 5
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 434
________________ भावी वृत्तियां ४१७ सन् १६१६ से १६४७ तक के भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम की घटनाओं का वर्णन यहाँ अनावश्यक है। भारत के दो टुकड़े हो गये । अंग्रेज यहाँ से चले गये। धर्म के आधार पर देश का विभाजन बड़ा भयंकर सिद्ध हुआ। लाखों हिन्दू-मुस्लिम मर गये, लाखों के घर-वार लुट गये, लाखों निर्वासित हो गये, उनकी करोड़ों की सम्पत्ति लुट गयी। पारम्परिक कलह अपनी सीमा को पार कर गया । परिणामत: आज भारत एवं पाकिस्तान दो पृथक-पृथक देश हैं। भारत के लम्बे इतिहास में सत्ता परिवर्तन की यह अद्भुत घटना थी। एक लम्बे साम्राज्य को पारस्परिक परामर्श से, बिना किसी युद्ध के या बिना रक्त बहाये, छोड़ देना सम्पूर्ण गंसार में एक विलक्षण एवं अभूतपूर्व घटना है। ग्रेट ब्रिटेन के राजा का सन्देश, जो वायसराय लार्ड माउण्टबेटन द्वारा संविधान सभा के सदस्यों के समक्ष पढ़ा गया था, बहुत ही भद्र एवं अनुकूल शब्दों से विजड़ित था –“अनुमोदन (मन्त्रणा) द्वारा शक्ति का हस्तान्तरण उस महान् लोकनीतिक आदर्श का परिपालन है, जिसके ऊपर ब्रिटिश एवं भारतीय जनता सर्वसो भावेन न्योछावर है।” राजा के इस सन्देश का उत्तर डा० राजेन्द्र प्रसाद ने उतनी ही सन्दर एवं भद्र भाषा में दिया था-'जहाँ हमारी यह उपलब्धि हमारे अति महान् क्लेशों एवं बलिदानों का परिणाम है, वहीं यह संसार की शक्तियों एवं घटनाओं का परिणाम भी है, और अन्त में, जो किसी अन्य तत्त्व से किसी भी दशा में कम महत्त्वपूर्ण नहीं है, यह ब्रिटिश जाति की ऐतिहासिक परम्पराओं एवं लोकनीतिक आदर्शों का, समापन (निप्पत्ति) एवं परिपालन भी है' (देखिए, वी० पी० मेनन कृत 'ट्रांस्फर आव पावर इन इण्डिया', ओरिएण्ट लांगमैस, १६५७. पृ० ४१५)। भारतीय स्वतन्त्रता का कानून (विधान) २ ब्रिटिश पालियामेण्ट द्वारा पारित किया गया और १८ जुलाई १६४७ को इसे राजकीय स्वीकृति मिली। कैविनेट मिशन (जिसमें पैथिक लारेंस, स्टैफोर्ड क्रिप्स एवं ए० वी० अलेक्जेण्डर नामक तीन ब्रिटिश मंत्री, सम्मिलित थे) द्वारा एक संविधान सभा (कांस्टीचएण्ट असेम्बली ) की स्थापना की गयी थी, जिसकी प्रथम बैठक दिसम्बर सन् १६४६ में हुई। इसकी अन्य बैठक अगस्त सन् १९४७ में हुई और उसमें स्वतन्त्र भारत के विधान बनाने का निर्णय लिया गया । इस सभा का कार्यदो वर्षों से अधिक काल तक चलता रहा और २६ जनवरी १९५० को इसके द्वारा पारित विधान कार्यान्वित हुआ। इस विधान में ३६५ धाराएँ हैं और ६ परिशिष्ट हैं (१५ धाराएँ तत्क्षण कार्यान्वित हो चुकी थीं (देखिए धारा संख्या ३६४)। स्वतन्त्रता के उपरान्त आधुनिक भारत एवं इसके नेताओं की कुछ उपलब्धियाँ अति संक्षेप में निम्नलिखित हैं। (१) एक ऐसे व्यापक लोकनीतिक विधान की उत्पत्ति, जिसके द्वारा भाषण एवं उपासना की स्वतन्त्रता तथा प्रकाशन की स्वतन्त्रता प्राप्त है, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा है, व्यवहार (कानन) की दृष्टि में सभी बराबर हैं, स्त्रियों की स्थिति में समानता प्राप्त है और न्याय व्यवस्था को स्वाधीनता प्राप्त है; (२) अस्पृश्यता का उच्छेद (धारा १७); (३) बिना किसी प्रकार के युद्ध के भारत में राजनीतिक एकता की स्थापना , जिसमें ५०० से ऊपर भारतीय रियासतों का एकीकरण हआ. (इन रिया २. देखिए 'ट्रांस्फर आव पावर इन इण्डिया'; परिशिष्ट संख्या ११ में १६४७ का भारतीय स्वतन्त्रता का कानून है (पृ० ५१६-५३२) और परिशिष्ट संख्या १२ में भारतीय स्वतन्त्रता की बिल पर कांग्रेस की टिप्पणियाँ हैं जिनके साथ दिनांक जुलाई ३, १६४७ को नेहरू द्वारा किये गये सुधार भी हैं, जिन पर उन्होंने अपने हस्ताक्षर भी जड़ दिये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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