Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 5
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 366
________________ अध्याय ३५ कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त भारतीय धर्म एवं दर्शन के अत्यन्त मौलिक सिद्धान्तों में परिगणित है । यह उस प्रश्न के समाधान का प्रयास है जो सभी विचारशील व्यक्तियों के मन में उठा करता है, यथा शरीर की मृत्यु के उपरान्त मनुष्य का क्या होता है ? इस सिद्धान्त ने सहस्रों वर्षों तक अथवा कम-से-कम उपनिषदों के काल से सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन एवं सभी हिन्दुओं, जैनों एवं बौद्धों को प्रभावित कर रखा है । यह एक विशाल विषय है और गत कुछ दशकों से पश्चिम के लेखकों के मनों को इसने आकृष्ट कर रखा है । पुनःशरीर धारण पर पश्चिम में अब एक बृहत् साहित्य की रचना हो चुकी है । प्राचीन ऐतिहासिक कालों में बहुत-से देश पुनर्जन्म में विश्वास करते थे । हेरोडोटस का कथन है कि कुछ यूनानियों ने ( जिनके नाम उसे ज्ञात थे, किन्तु उसने उन्हें गुप्त रखा) उस सिद्धान्त का प्रयोग अपना समझ कर किया, किन्तु सर्वप्रथम मिस्र देश के निवासियों ने ऐसा कहा और विश्वास किया कि मानव आत्मा अमर है और शरीर की मृत्यु हो जाने पर यह किसी अन्य जीवित वस्तु में, जो जन्म लेने वाली होती थी, प्रवेश कर जाता है । लगता है, पैथागोरस ने इस पर विश्वास किया है किन्तु उसने इस विश्वास को भारत से ग्रहण किया, इस विषय में विभिन्न मत प्रकाशित हुए हैं। प्रो० ए० बी० कीथ (जे० आर० ए०एस० १६०८, पृ० ५६६ - ६०६ ) ने एक लम्बे विवेचन के उपरान्त ऐसा मत प्रकाशित किया है ि पैथागोरस ने यह सिद्धान्त भारत से उधार नहीं लिया । विषयान्तर हो जाने के भय से प्रस्तुत लेखक इस विषय में अपना मत नहीं रखना चाहता । हाप्किस एवं मैक्डोनेल ने पैथागोरस के ऊपर पड़ने वाले भारतीय प्रभाव को स्वीकार किया है किन्तु ओल्डेनबर्ग एवं कीथ ने नहीं । केवल पैथागोरस ने ही नहीं, प्रत्युत एम्पीडॉकिल्स ( जिसने यहाँ तक कहा था कि वह पहले लड़का, लड़की, झाड़ी, पक्षी एवं मछली था ) एवं प्लेटो ने आत्मा के पूर्वजन्म एवं उत्तर- जन्म में विश्वास किया है। देखिए केनेथ वाकर का ग्रन्थ 'दि सर्किल आव लाइफ' (जिसमें उन्होंने लिखा है कि ईसा मसीह के काल में पुनर्जन्म का सिद्धान्त भारत में भलीभांति विख्यात था, पृ० ६३ ) तथा गफ कृत 'फिलॉसॉफी आव उपनिषद्' (लन्दन, १८८२), पृ० २६-३१ । गफ ने प्रतिपादित किया है कि उपनिषदों के पूर्व वैदिक साहित्य में पुनर्जन्म की बात नहीं पायी जाती अतः हिन्दुओं ने इस सिद्धान्त को भारतीय आदिवासियों से ग्रहण किया होगा । देखिए इसी विषय में जी० डब्ल्यू० ब्राउन का मत 'स्टडीज़ इन ऑनर आव ब्लूमफील्ड' नामक ग्रन्थ में ( पृ० ७६-८८) । यह अत्यन्त निर्मूल कल्पना है, इसके पीछे कोई प्रमाण नहीं है । यदि पुनर्जन्म का सिद्धान्त मिस्रवासियों तथा अन्य आदिजातियों में पाया जा सकता है तो ऐसी कल्पना के लिए कोई तर्क नहीं है कि इस सिद्धान्त का प्रतिपादन स्वयं भारतीयों ने नहीं किया, विशेषतः जब इस विश्व में कहीं भी इतना विस्तृत कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त नहीं पाया जाता जितना कि संस्कृत साहित्य में विद्यमान है । अतः गफ एवं ब्राउन की ( जिसने यहाँ तक लिख डाला है कि योग, सांख्य एवं उपनिषद् शब्द द्रविड़ भाषा के शब्दों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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