Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 5
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 364
________________ विश्व-विद्या ३४७ वायुपु० ने लगभग १००० श्लोक (अध्याय ३६-४६) भुवनविन्यास (विश्व-संगठन) के विषय में, ब्रह्मपु० ने (अध्याय १८-२१) उसी विषय में (अर्थात् भुवनकोष के विषय में), मत्स्यपु० (अध्याय ११४) ने भुवनकोष के विषय में लिखे हैं तथा कर्मपु० (११४०) ने भुवनविन्यास पर लिखा है तथा द्वीपों एवं वर्षों का उल्लेख किया है। प्राचीन एवं मध्यकालीन देशों का उल्लेख विष्णुपु० (२।३।१५-१८) वायुपु० (४५।१०६-१३६), ब्राह्माण्डपु० (२।१६।४०-६८), मत्स्यपु० (११४१३४-५६), मार्कण्डेयपु० (५४), पद्मपु. (आदि ६।३४-५६), वामनपु० (१३॥३६ तथा आगे के श्लोक) में हुआ है । ४३ भीष्मपर्व (अध्याय ६) में भी देशों एवं लोगों का उल्लेख है । बृहत्संहिता के नक्षत्रकूर्माध्याय (१४।१-३३) में भारतवर्ष के मध्य में स्थित कई देशों के नाम आये हैं और इसकी आठों दिशाओं में स्थित देशों के नाम भी आये हैं। ऋग्वेद में बहुत-सी नदियों के नाम आये हैं। (ऋ० १०।७५३५-६) में गंगा से कुभा (काबुल नदी) गोमती, क्रुमु (आधुनिक कुर्रम) तक की १८ या १६ नदियों के नाम आये हैं। इक्कीस नदियों (तीन दलों में विभाजित तथा प्रत्येक दल में सात) की ओर संकेत मिलते हैं (ऋ० १०।६४१८, १०७५।१ एवं । ऋ० (११३२।१२ एवं १०११०४१८) में सात सिन्धुओं का उल्लेख है। और देखिए (ऋ० २।१२।१२,४।२८।१, १०।४३।३) । नदियों को मुख्य-मुख्य पर्वतों से निकली कहा गया है, देखिए इस विषय में मत्स्यपु० (११४।२०-३३), कूर्मपु० (१।४७।२८-३६), ब्रह्माण्ड पु० (२।१६।२४-३६), वामनपु० (१३।२०-३५ एवं ३४१६-८), ब्रह्मपु० (१६१०-१४ एवं २७ । २५-४०) पद्मपु० (आदि खण्ड, ६।१०-३२)। अनुशासनपर्व (१६५।१६-२६) में भी बहुत-सी नदियों का उल्लेख है। ४३. पाणिनि में जनपदों एवं अन्य भौगोलिक आंकड़ों के लिए देखिए जर्नल (उत्तर प्रदेश को हिस्टॉरिकल सोसाइटी, जिल्द १६, पृ० १०-५१, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल) एवं इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली, जिल्द २१, पृ० २६७-३१४ जहाँ पुराणों में उल्लिखित देशों का व्यौरा उपस्थित किया गया है, और देखिए डा० डी० सी० सरकार कृत 'टेक्स्ट आव दि पुराणिक लिस्ट आव पिपुल्स' (इण्डि० हिस्टॉ० क्वा०, जिल्द १६, पृ० २६७-३१४) । पाणिनि से ऐसा लगता है कि वे सम्पूर्ण भारत से अवगत थे, सुदूर उत्तर-पश्चिम से कलिंग तक तथा अश्मक (अजन्ता एवं पैठान के आसपास का क्षेत्र) एवं आधुनिक कच्छ तक, क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से ये नाम लिये हैं, यथा-गान्धार (४।१।१६६), सुवास्तु (४।२।७७, आधुनिक स्वात), कम्बोज (४।१।१७५) एवं तक्षशिला (४।३।६३), सिन्धु (४।३।६३), शलातुर (४॥३॥६४, जहाँ पर पाणिनि का जन्म हुआ था, जिसके कारण भामह ऐसे 'पश्चात्कालीन लेखकों ने उन्हें शलातुरीय कहा है), सौवीर (४।१।१४८), कच्छ (४।२।१३३), मगध, कलिंग, सूरमास (सूर्मा घाटी) (४।१।१७०), अश्मक । (४।१११७३) । देखिए कानिङघम कृत 'एश्यण्ट जियॉग्रफी' आव इण्डिया' (१८७२), नन्दलाल डे कृत 'दि जियोफिकल डिक्शनरी आव ऐंश्येण्ट एण्ड मेडिवल इण्डिया (१६२७), सुरेन्द्रनाथ मजुमदार कृत 'बिब्लियोग्रेफी आव ऐंश्यण्ट जियॉग्रेफी ऑव इण्डिया' (इण्डियन ऐंटीक्वेरी, जिल्द ४८, १६१६, पृ० १५-२३) एवं तीर्थों को तालिका', जो इसी महाग्रन्थ से संलग्न है (हिन्दी संक्षिप्त संस्करण के खण्ड २ में प्रकाशित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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