Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 5
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 331
________________ अध्याय ३४ विश्व-विद्या ईश्वर के अस्तित्व के विषय में सभी धर्मशास्त्रकारों की सहमति है। ईश्वर के अस्तित्व के विषय में तर्क अथवा प्रमाण उपस्थित करने के काय में कदाचित् ही कोई अभिरुचि उनकी ओर से प्रकट की गयी हो। ईसाई धर्मावलम्बियों ने सैकड़ों वर्षों तक ईश्वर के अस्तित्व के सम्बन्ध में बहुत-से तर्क उपस्थित किये हैं। विलियम जेम्स ने अपने ग्रन्थ 'वैराइटीज आव रिलिजियस एक्स्पीरिएंस' (पृ० ४३७) में उन तर्कों को संक्षिप्त ढंग से रखा है। इस व्यवस्थित विश्व को देखकर विश्वविद्या-सम्बन्धी प्रथम तर्क यह उपस्थित होता है कि इसका प्रथम कारण ईश्वर है, जिसको कम-से-कम इतनी पूर्णता अवश्य प्राप्त है जितनी इस विश्व में विद्यमान है। हेतु-विद्या-विषयक तर्क यह है कि स्वयं प्रकृति के पीछे एक उद्देश्य या हेतु या अभिप्राय है, जिसके आधार पर ऐसी परिकल्पना सार्थक है कि प्रथम कारण (अर्थात् ईश्वर) अवश्य ही एक निर्माणकारी बुद्धि या मन है। तब अन्य तर्क भी आ उपस्थित होते हैं, यथा 'नैतिक तर्क' (नतिक कानून अथवा नैतिक व्यवस्था के पीछे कोई-न-कोई कानून या व्यवहार का प्रणेता अथवा व्यवस्था देने वाला अवश्य होता है), ‘एक्स कांसेंसू जेण्टियम का तर्क (अर्थात् सारे संसार में ईश्वर के विषय में विश्वास फैला हुआ है, और यह बात यों ही नहीं है, इसमें कुछ वजन है अर्थात् इसका कुछ अर्थ होना चाहिए)।' १. और देखिए डब्लू० एफ० वेस्टावेकृत 'ऑब्सेसंस एण्ड कन्विक्शंस आव दि ह्यूमन इण्टे लेफ्ट' (ब्लंकी एण्ड संस, १६३८) जिसमें जेम्स की चार बातों में एक पाँचवीं बात जोड़ दी गयी है, यथा-सत्त्वविद्या-सम्बन्धी तर्क (आण्टॉलॉजिकल आमेण्ट-ईश्वर के विषय में भावना या धारणा ईश्वर के अस्तित्व को आवश्यक बना देती है), ५०३७८-८० । विलियम जेम्स ने, 'प्रेग्मैटिज्म' (पृ० १०६, १६१० संस्करण) में लिखा है कि ईश्वर के अस्तित्व के विषय में प्रमाण या साक्ष्य व्यक्तिगत आन्तरिक अनुभूति में पाया जाता है। श्री वेस्टावे (पृ० ३७४) ने स्पष्ट उत्तर दिया है कि ईश्वर के अस्तित्व के विषय में कोई प्रमाण नहीं है, किन्तु (पृ० ३८७) उन्होंने स्वीकार किया है कि उद्देश्य (प्रयोजन या अभिप्राय या अर्थ) सम्बन्धी तर्क से एक सम्भावना की अत्यन्त ऊँची मात्रा उठ खड़ी होती है और उन्होंने विश्वास किया है कि यह विश्व कोई दैवयोग घटना मात्र नहीं है, जैसा कि कुछ दार्शनिकों ने विश्वास प्रकट किया है। ईश्वर के अस्तित्व के लिए उपस्थित उद्देश्य का तर्क विकासवादी सिद्धान्त द्वारा खण्डित हो चुका है। यदि प्रत्येक वस्तु के पीछे कोई कारण है तो, ऐसा तर्क उपस्थित किया जाता है कि ईश्वर के पीछे भी तो कोई कारण होना चाहिए। और यह कुछ लोगों द्वारा उपस्थित किया जाता है कि इस कल्पना के पीछे कोई तर्क नहीं है कि विश्व का कोई आरम्भ भी था। कुमारिल ऐसे मीमांसकों ने ऐसा मत :प्रकाशित किया है। एच० जी० वेल्स ने अपने ग्रन्थ 'यू काण्ट बी टू केयरफुल' (लण्डन १६४२, पृ० २८२) में मत प्रकाशित किया है कि ईश्वर के . सर्वज्ञत्व, सर्वविश्वव्यापकत्व एवं सर्वशक्तित्व से सम्बन्धित विचार का अवश्य त्याग हो जाना चाहिए, क्योंकि ये, उनके मत से, असंगत स्थापनाएं हैं। दूसरी ओर डा० एफ्० डब्लू० जोंस ने अपने ग्रन्थ 'डिजाइन एवं परपज' (लण्डन, Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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