Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 5
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 359
________________ ३४२ धर्मशास्त्र का इतिहास पुरुषसूक्त (ऋ० १०६०।१-२) की ओर इंगित है (श्लोक २-३); उसमें ऐसी व्याख्या है कि नारायण का नाम इसलिए पड़ा है कि वे जलों पर लेटते हैं; इसमें कूर्म अवतार की ओर संकेत है, सृष्टि के नौ प्रकारों का उल्लेख है । इसमें एक नया सिद्धान्त यह आया है कि ब्रह्मा ने आरम्भ में मनु से उत्पन्न पुत्रों तथा सनन्दन एवं सनक की रचना की (६।६५) । अध्याय ७ में फिर से हुई सृष्टि की ओर संकेत है । अध्याय ८ में (जिसमें १६८ श्लोक हैं) युगों, उनकी अवधियों, ८ देवयोनियों, पशुओं, मात्राओं (छन्दों) आदि तथा ब्रह्मा के विभिन्न पुत्रों की चर्चा है। ब्रह्माण्डपुराण (१ के अध्याय ३-५) में हिरण्यगर्भ के प्रकट होने तथा विभिन्न प्रकार की सृष्टियों (रचनाओं) का उल्लेख है । चौथे अध्याय में प्रधाना, एवं गुणों का उल्लेख है और ऐसा आया है कि प्रधान में पाये जाने वाले गुणों के असमान मिश्रण से सृष्टि होती है। उसमें ब्रह्मा के मनस पुत्रों का भी उल्लेख है । इस पुराण के अनुषंगपाद (द्वितीय परिच्छेद) के अध्याय ८ एवं ११ में देवों, पितरों, मनुष्यों एवं महान् ऋषियों, भृगु आदि की सृष्टि की चर्चा है । ब्रह्मपुराण के प्रथम तीन अध्याय (जिनमें लगभग २४० श्लोक हैं) सृष्टि का उल्लेख करते हैं । प्रथम अध्याय (श्लोक ३४ तथा इसके आगे के श्लोक) में ब्रह्मा को भूतों का स्रष्टा एवं नारायण का भक्त कहा गया है, इसमें आगे आया है कि महत् से अहंकार का उदय हुआ और अहंकार से पांच तत्त्वों की उत्पत्ति हुई । मत्स्यपु० के समान ब्रह्मपु० (१।३७-४१) भी मनु (१।५-१३) का अनुसरण करता है। इसमें मरीचि, अत्रि आदि सप्तर्षियों की जो सप्त 'ब्राह्मणः' थे, उत्पत्ति का उल्लेख है तथा साध्यों, देवों, ऋग्वेद एवं अन्य वेदों, पक्षियों एवं सभी प्रकार के जीवों की सृष्टि की भी चर्चा है। इसमें (११५३) आया है कि विष्णु ने विराज की सृष्टि की, जिसने पुरुष की रचना की (यह पुरुषसूक्त, ऋ० १०।६०१५ पर आधृत है) और पुरुष ने लोगों को उत्पन्न किया । अध्याय २ में आया है कि पुरुष ने शतरूपा से विवाह किया, इस पुरुष को स्वायंभुव मनु कहा जाता है। पुरुष (स्वायम्भुव मनु ) एवं शतरूपा को वीर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। वीर के दो पुत्र थे-प्रियव्रत एवं उत्तानपाद । इसके उपरान्त इनके वंशजों का उल्लेख है, जिनमें दक्ष की ५० पुत्रियाँ थीं, जिनमें १० धर्म को, १३ कश्यप को एवं २७ (नक्षत्र) राजा सोम को व्याही गयीं। तीसरे अध्याय में देवों एवं असुरों की रचना का उल्लेख है। विष्णुपुराण के प्रथम अंश के अध्याय २,४,६,एवं ७ में सृष्टि के कई प्रकारों का उल्लेख है। अध्याय २ का आरम्भ विष्णु से होता है और ऐसा आया है कि प्रधान एवं पुरुष उसके रूप हैं और श्लोक ३४-५० में सांख्य सिद्धान्त की सविस्तार चर्चा है और श्लोक ५४ में महत् एवं अन्य तत्त्वों द्वारा हिरण्यगर्भ (सोने का अण्डा) की रचना का उल्लेख है । अध्याय ३ में आया है कि किस प्रकार ब्रह्म ने, जो गुणरहित है, बोधगम्य नहीं है, शुद्ध है, निष्कलंक है, सृष्टि की, और इसका उत्तर दिया हुआ है कि सभी पदार्थों में कुछ स्वाभाविक शक्तियाँ हैं, जो बोधगम्य नहीं हैं, अत: ब्रह्म में विश्व की सृष्टि करने की शक्ति है। अध्याय ५ में नौ प्रकार की सृष्टियों, यथा--महत्, तन्मात्राओं, भूतों (तत्त्वों), वैकारिक (अर्थात् ऐन्द्रियक), मुख्य (अर्थात् अचल पदार्थ), निम्नश्रेणी के पशुओं, ऊर्ध्वरेतों (दैवी जीवों), मानवों, कुमारों (अर्थात् सनत्कुमार आदि) का उल्लेख है। मार्कण्डेयपुराण के अध्याय ४२ में प्रधान, महत्, अहंकार, तन्मात्राओं की सृष्टि का उल्लेख है, किन्तु ब्रह्मा द्वारा ही इनकी सृष्टि कही गयी है । अध्याय ४४ में विष्णुपु० की भाँति ६ सृष्टियों की चर्चा है। अभ्याय For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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