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मीमांसा एवं धर्मशास्त्र शबर : २०० एवं ४०० ई० के बीच में (सम्भवत: २०० ई० के आसपास) । तन्त्रवातिक (२।३।२३, २।३।२७ एवं ३।४१३१) से प्रकट होता है कि भाष्यकारान्तर नामक एक अन्य व्यक्ति था जो शबर से पूर्व हुआ था। तन्त्रवार्तिक (३।४।१२) एवं टुपटीका (६३५४१०) से पता चलता है कि कुमारिल ने कहीं-कहीं वृत्तिकार शब्द शबर के लिए भी प्रयुक्त किया है।
भमित्र : श्लोकवार्तिक के १० वें श्लोक पर नयरत्नाकर का कथन है कि भर्त मित्र ने मीमांसा को ईश्वरवादी माना है। उम्बेक के कथनानुसार (तात्पर्यटीका, पृ० ३) उसका ग्रन्थ तत्त्वशुद्धि कहलाता था। काल ४०० एवं ६०० ई० के बीच में।
कमारिल भटट: लगभग ६५०-७०० के बीच में। प्रभाकर : शबर के भाष्य पर बृहती के लेखक । काल ६७५-७२५ ई० के बीच में।
मण्डन : कमारिल के शिष्य या उनसे छोटी अवस्था के उन्हीं के समकालीन । पूर्वमीमांसा एवं वेदान्त दोनों पर लिखा । विधिविवेक (पृ० १०६) में बृहती को उद्धृत किया है। इनके अन्य ग्रन्थ हैं-भावनाविवेक, विभ्रमविवेक एवं मीमांसानुक्रमणिका । काल, ६८०-७२० ई० के बीच में कहीं। और देखिए ए० बी० ओ० आर० आई०, (जिल्द १८, पृ० १२१-१५७, प्रो० कुप्पुस्वामी शास्त्री), जे० आई० एच० (जिल्द १५, ए. ए० ३२०-३२६)।
उम्बेक : कुमारिल के शिष्य , कुमारिल के श्लोकवार्तिक एवं मण्डन के भावनाविवेक के टीकाकार। सामान्यत: उम्बेक को लोग नाटककार भवभूति मानते हैं। काल-७००-७५० ई. के बीच में।
शालिकनाथ : प्रभाकर के शिष्य, प्रभाकर के ग्रन्थ बृहती पर ऋजुविमला नामक टीका के लेखक तथा प्रकरणपंञ्चिका नामक एक स्वतन्त्र ग्रन्थ के प्रणेता । यह महत्त्वपूर्ण है कि बृहती की टीका ऋजुविमला में उन्होंने श्लोवार्तिकं का एक श्लोक उद्धृत किया है और कुमारिल को बड़े सम्मान के साथ (यदा हुर्तिककारमिश्रा:) उल्लिखित किया है। काल, ७१०-७७० ई० के मध्य में कहीं।
सुरेश्वर : (संन्यासी होने के पूर्व विश्वरूप कहे जाते थे) । शंकराचार्य के शिष्य । काल, ८००-८४० ई. के मध्य में कहीं।
वावस्पति मिश्र : सभी शास्त्रों पर प्रसिद्ध ग्रन्थों का निर्माण किया है। मण्डन के विधिविवेक पर न्याय. कणिका एवं शंकर भाष्य पर मामती के लेखक । काल, ८२०-६०० ई० के बीच में।
पार्थसारथि मिष: शास्त्रदीपिका (निर्णय सागर प्रेस, १६१५), न्यायरत्नाकर (श्लोकवार्तिक की टीका), तन्त्ररत्न (पुटीका की टीका) एवं न्यायरत्नमाला (गायकवाड़ संस्कृत सीरीज में रामानुजाचार्य के नायक रत्न की टीका के साथ प्रकाशित) के लेखक का काल, ६००-११०० ई० के बीच में कहीं।
पार्थसारथि के पश्चात् के अन्य लेखकों के विषय में हम संक्षेप में यों कह सकते हैं-सुचारितमिध, श्लोकवार्तिक पर काशिका नामक टीका के लेखक; भवनाथ या भवदेव, नयविवेक (मद्रास यूनिवर्सिटी संस्कृत सीरीज, रविदेव की टीका विवेकतत्त्व के साथ) के लेखक, काल, १०५०-११५० ई०; सोमेश्वर, माधव के पुत्र, न्यायशुद्धि या राणक (तन्त्रवार्तिक पर एक विस्तृत टीका) के लेखक, काल, १२०० ई. के लगभग, मुरारिमिश्र, जो मीमांसा के तीसरे सम्प्रदाय मुरारेस्तृतीयः पन्थाः) के संस्थापक कहे जाते हैं, त्रिपादीनीतिनयन एवं अंगत्वनिरुक्ति के लेखक, काल,११५०-१२२० के बीच; माधवाचार्य, जैमिनीय-न्यायमाला विस्तर के लेखक, काल , १२६७ १३८६; अप्पय दीक्षित, विधिरसायन के लेखक, विभिन्न शास्त्रों पर लगभग १०० या १०८ ग्रन्थों के लेखक, १५२०-१५६३ के मध्य हुए थे, ऐसा कहा जाता है, कुछ लोग इन्हें १५५४-१६२६ की तिथि देते हैं। लोगाक्षि
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