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धर्मशास्त्र एवं सांस्य
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१०३), कूर्मपुराण (१।४।१३-३५; २।७२१-२६), मार्कण्डेयपुराण (४२।३२-६२), ब्रह्माण्डपुराण (४।३।३७४६, २।३२।७१-७६), भागवतपुराण (प्रो० दासगुप्त की इण्डियन फिलॉसफी, खण्ड ४, पृ० २४-४८ एवं
श्री सिद्धेश्वर भट्टाचार्य, जे० बी० आर० एस्, १६५०, पृ० ६-५०) के स्कन्ध ३ का अ० २६; वराहपुराण (बिब्लियोथिका इण्डिका, १८६३) आदि । कवि कालिदास एवं बाण ने भी सांख्य सिद्धांतों एवं शब्दों का प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ, कुमारसम्भव (२।४, रघुवंश (१०।३८, ८।२१), कादम्बरी (प्रथम श्लोक)।
तन्त्र भी सांख्य सिद्धान्तों से प्रभावित हैं । देखिए शारदातिलक ।
जब शान्तिपर्व (२६०।१०३-१०४ =३०१०१०८-१०६, चित्रशाला प्रेस संस्करण) यह उद्घोष करता है कि वेदों, सांख्य, योग, विभिन्न पुराणों, विशद इतिहासों, अर्थशास्त्र में जो कुछ ज्ञान पाया जाता है तथा इस विश्व में जो कुछ ज्ञान है वह सांख्य से निष्पन्न है, तो यह केवल दर्पोक्ति मात्र नहीं है । सांख्य सिद्धान्त के विकास एवं इसके स्वरूपों के निष्पक्ष अध्ययन के लिए देखिए डा० बहनन का ग्रन्थ 'योग' (अध्याय ४, पृ० ६३-६१) ।
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