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धर्मशास्त्र एवं सांख्य
२२५ में सुधारा? इसके विषय में सामान्य रूप से स्वीकृत कोई सम्मति नहीं दी जा सकती । सन् ५४६ ई. में परमार्थ द्वारा, जो आरम्भ में भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण थे और फिर उज्जयिनी में श्रमण हो गये थे, सांख्यकारिका का अनुवाद एवं टीका चीनी भाषा में करायी गयी (देखिए बी० ई० एफ० ई० ओ०, १६०४, पृ० ६०) । शंकराचार्य ने वे• सू० (१।४।११) में सांख्यकारिका के तीसरे श्लोक का सम्पूर्ण अंश तथा वे० स० (११४१८) में इसका एक चौथाई अंश उद्धृत किया है। किन्तु सांख्य सिद्धान्त ने, ऐसा प्रतीत होता है, कई अवस्थाओं में प्रवेश किया। चीनी स्रोतों से पता चलता है कि इसके अठारह सम्प्रदाय थे (देखिए जान्सन का 'अर्ली सांख्य' जहाँ बी०ई० एफ० ई० ओ०, १६०४,१० ५८ से उद्वरण लिया गया है)।
ल द्वारा विरचित सांख्यसूत्र या सांख्यप्रवचनसूत्र भी प्रचलित है। इसकी दो टीकाएँ प्रकाशित हुई हैं, यथा--अनिरुद्ध कृत एवं वेदान्ती महादेव की टीका के कुछ भाग (बिब्लियोथिका इण्डिका सीरीज, १८८१, में गार्वे द्वारा सम्पादित) । यह सन् १४४० ई० में प्रणीत हुआ, जैसा कि श्री गार्वे एवं फिज़-एडवर्ड हाल द्वारा कहा गया है। इसका एक अन्य संस्करण है जिसमें २३ सत्र हैं और जिसे 'तत्त्वसमास' नाम दिया गया है। तत्त्वसमास की एक टीका 'क्रमदीपिका' है जो चौखम्बा संस्कृत सीरीज़ द्वारा प्रकाशित है। चौखम्बा संस्कृत सीरीज ने कुछ अन्य संक्षिप्त पश्चात्कालीन ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं, जिन्हें यहाँ स्थानाभाव से हम नहीं दे पा रहे हैं । सांख्यकारिका पर बहुत-सी टीकाएँ प्रकाशित हुई हैं । अत्यन्त आरम्भिक टीका सम्भवतः परमार्थ कृत अनुवाद के रूप में है जो सन् ५४६ ई० में चीनी भाषा में प्रकाशित हुई थी। इसका संस्कृत रूपान्तर विद्वान् पं० ऐयस्वामी शास्त्री द्वारा किया गया है और वह श्री वेंकटेश्वर ओरिएण्टल सीरीज़ द्वारा एक मूल्यवान् भूमिका के साथ सन् १६४४ ई० में प्रकाशित हुआ है। सांख्यकारिका की दूसरी टीका 'माठरवृत्ति' चौखम्बा संस्कृत सीरीज द्वारा सन् १६२२ ई० में प्रकाशित हुई थी। डा० वेलवाल्कर (ए० बी० ओ० आर० आई०, खण्ड ५, पृ० १३३-१६१) ने माठरवृत्ति पर एक अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण लम्बा निबन्ध लिखा है और कहा है कि माठरवृत्ति ही वह मूल टीका है जिसका चीनी अनुवाद परमार्थ ने किया था, जिसमें कालान्तर में बहुत-सी
१८६४, विज्ञानभिक्षु, के 'सांख्य-प्रवचन-भाष्य' के संस्करण पर उनकी भूमिका (हारवर्ड ओरिएण्टल सीरीज़); प्रो० मैक्समूलर कृत 'सिक्स सिस्टेम्स आव फिलॉसॉफी' (१६०३ का संस्करण, पृ० २१६-३३०); पाल डुशेन कृत 'वी फिलॉसॉफी आव दी उपनिषद्स' (ए० एस् गेडेन द्वारा अनूदित , १६०६, पृ० २३६-२५५); प्रो० ए. बी० कीथ कृत 'सांख्य सिस्टेम' (१६२४); ई० एच० जांस्टन कृत 'अर्लो सांख्य' (रॉयल एशियाटिक सोसाइटी आव ग्रेट ब्रिटेन, १६३७); दासगुप्त कृत 'इण्डियन फिलॉसॉफी', खण्ड १, पृ० २०८-२७३ (१९२२); डा० राधाकृष्णन् कृत 'इण्डियन फिलॉसॉफी' खण्ड-२, पृ० २४८-३३५ (१६२७) एवं 'फिलॉसॉफी, ईस्टर्न एण्ड वेस्टर्न', खण्ड-१, पृ० २४२-२५७; प्रो० ए० बी० कीथ कृत 'रेलिजन एण्ड फिलॉसॉफी आव दि वेद एण्ड उपनिषद्स', खण्ड-२, पृ० ५३५-५५१; डा० डब्लू० रूबेन कृत 'बिगनिंग आव एपिक सांख्य' (ए० बी० ओ० आर० आई०, खण्ड ३७, १६५६, पृ० १७४-१८६); श्री जयदेव योगेन्द्र कृत 'सांख्य इन दि मोक्षपर्व' (जर्नल आव बाम्बे यूनिवसिटी, १६५७, खण्ड-२६, न्यू सीरीज, आर्ट स नम्बर, पृ० १२३-१४१; श्री वी० एम० बेदकर कृत 'स्टडीज इन सांख्य, पञ्चशिख एण्ड चरक' (ए० बी० ओ० आर० आई०, खण्ड-३८, पृ० १४०१४७) एवं 'स्टडीज इन सांख्य, दि टीचिग आव पञ्चशिख इन दि महाभारत' (ए० बी० ओ० आर० आई०, खण्ड ३८, पृ० २३३-२४४).।
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