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प्रवचन- ७५
२७
किसी ने शहर के पुलिस थाने में समाचार भेज दिये थे। गाँव में पुलिस की गाड़ी आ पहुँची। पूरी पुलिस पार्टी के साथ इन्स्पेक्टर आया था। गाँव के लोगों को इकट्ठा किया । 'साहूकार के घर को किसने आग लगाई ?' पूछताछ होती है। अय्यु को भी बुलाया गया। लोगों के होशहवास उड़ गये। अब हम सब को जेल जाना पड़ेगा...। हमारे परिवार बरबाद हो जायेंगे...।
पुलिस इन्स्पेक्टर ने अय्यु को पूछा : 'बताइये जमींदार साब, इन लोगों में से कौन-कौन अपराधी हैं ? आग लगाने में कौन-कौन शामिल थे?'
अय्यु की दया ने सबको बचाया :
अय्यु ने गाँव के लोगों की ओर देखा । सबसे आगे गुल्ला खड़ा था। सभी लोगों के मुँह लटके हुए थे। सबकी आँखें जमीन पर स्थिर थी । अय्यु ने तो कभी का जो सोचना था वह सोच लिया था। उसके हृदय में दया-करुणा का सागर उफन रहा था। 'दुःख देनेवालों के प्रति भी द्वेष नहीं करना है ... अपराधियों को भी क्षमा देना है... किसी भी मनुष्य को दुःख हो, वैसा नहीं करना है। किसी निर्दोष पशु-पक्षी को भी दुःख नहीं देना है। मैं किसी की हिंसा नहीं देख सकता हूँ... इसलिए मैंने पशुबलि का निषेध किया है। हिंसा किसी भी हालात में अच्छी नहीं है।'
अय्यु ने इन्स्पेक्टर से कहा : 'साहब, ये मेरे गाँव के लोग निर्दोष हैं। किसी ने भी मेरे घर को आग नहीं लगाई है। आग मेरी ही गलती से लगी थी । मैं बाड़े में पशुओं को देखने, लालटेन लेकर गया था, मेरे हाथ से लालटेन घास में गिर गई...आग लग गई... मैंने पशुओं को तुरन्त ही बंधनों से मुक्त कर दिया और बाद में मेरे परिवार को लेकर मैं घर से बाहर निकल गया...।'
इन्स्पेक्टर ने कहा : 'अच्छा, ऐसी बात है ? आपको बहुत नुकसान हुआ । भगवान् आपकी सहायता करें...।' पुलिस पार्टी को लेकर इन्स्पेक्टर चला गया। गाँव के लोग आश्चर्य से और अहोभाव से अय्यु को देखते रहे । अय्यु के चरणों में गिर पड़े। गुल्ला कुछ क्षण वहाँ रुका... बाद में अपने घर चला गया। उसके मन में जोरदार उथल-पुथल मच गई।
मेरे घर
'अय्यु को क्या मानूँ ? दोस्त या दुश्मन? मेरी पत्नी को बचाया...... को बचाया... वकील को रुपये देकर ...! मुझे जेल जाने से बचा लिया। वह चाहता तो मुझे आजीवन कारावास में बंद करवा सकता था । उसने मुझे और दूसरे किसानों को बचा लिया। नहीं, नहीं, अय्यु दुश्मन नहीं है, सच्चा दोस्त
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