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प्रवचन-९२
१९६ आत्मा, कर्म, परलोक, देवलोक, नरक... वगैरह परोक्ष विषयों में सूक्ष्म बुद्धि के बिना प्रवेश हो ही नहीं सकता है। बुद्धि का प्रकर्ष हो, तभी ये सारी बातें समझी जा सकती हैं। परोक्ष विषयों में 'अनुमान-प्रमाण' ही निर्णायक होता है! अनुमान-प्रमाण में तर्क-वितर्क करने की, तर्क-वितर्क को समझनेवाली बुद्धि चाहिए।
आत्मा, कर्म वगैरह परोक्ष (प्रत्यक्ष नहीं है) विषयों को समझाने के लिए हजारों ग्रंथ लिखे गये हैं। जैसे अपने जैन धर्म में ग्रंथ मिलते हैं प्राचीन, वैसे बौद्ध धर्म में एवं वैदिक धर्म में भी इस विषय के अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं । उच्च कोटि के प्रज्ञाप्रकर्ष वाले ऋषि-मुनि एवं विद्वान आचार्यों ने निःस्वार्थ भावना से ये सारे ग्रंथ लिखे हैं। ऐसे ग्रंथ सुनें और समझें तो तत्त्वज्ञान के प्रकाश से अपना आत्मप्रदेश प्रकाशित हो जाता है, ज्ञानानन्द की प्राप्ति होती है।
आज बुद्धि के तीन गुण ही बताये हैं, शेष पाँच गुण आगे बताऊँगा। आज बस, इतना ही।
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