________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-९४
२२० सुख चाहता है। आप लोग सुख चाहते हैं, हम भी सुख चाहते हैं! परंतु मुझे आप से पूछना है कि आप कैसा सुख चाहते हो? दो प्रकार का सुख :
सुख दो प्रकार के होते हैं दुनिया में। एक होता है निंदनीय सुख और दूसरा होता है प्रशंसनीय सुख | होते हैं दोनों सुख! एक सुख ऐसा होता है कि आप उस सुख को भोगें और दुनिया आपकी निंदा करे| दूसरा सुख ऐसा होता है कि आप उस सुख को भोगें और दुनिया आपकी प्रशंसा करे । कहिए, आपको कैसा सुख पसंद है?
सभा में से : प्रशंसनीय सुख ही चाहिए।
महाराजश्री : वैसा सुख पाना है तो जो इस अध्याय में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्म बताये हैं, उन सामान्य धर्मों का जीवन में पालन करना ही होगा। यदि आप इन सामान्य धर्मों का पालन नहीं करते हैं और विशेष धर्मों का पालन करते हैं, तो इससे सुख तो मिलेगा, परंतु निंदनीय सुख मिलेगा। विशेष धर्म यानी परमात्मपूजन, गुरुसेवा, तीर्थयात्रा, दान, तपश्चर्या वगैरह से भी सुख मिलेगा; परंतु प्रशंसनीय सुख नहीं मिलेगा। निंदनीय और प्रशंसनीय सुखों के कुछ 'सेम्पल' बताता हूँ। पसंदगी के दो माध्यम :
० मनुष्यजन्म मिला, यह सुख है। परंतु नीच कुल में जन्म मिला इसलिए यह सुख निंदनीय है। उच्च कुल में जन्म मिला तो प्रशंसनीय सुख है।
० जन्म देनेवाली माता सुशील है, वात्सल्यपूर्ण है, संस्कारी है, तो माता का सुख प्रशंसनीय मिला । यदि माता कुशील है, क्रूर है, कुसंस्कारी है, तो माता का सुख निंदनीय कहलायेगा।
० वैसे पिता मिलना सुख है, परन्तु यदि पिता दरिद्र है, व्यसनी है, कुसंस्कारी है, तो वह सुख निंदनीय है। पिता श्रीमंत है, सुसंस्कारी है, गुणवान है, तो वह सुख प्रशंसनीय है।
० पत्नी मिलना सुख है, परन्तु वह कुरूप है, कुशील है, क्रोधी है, प्रमादी है, तो वह सुख निंदनीय है। यदि पत्नी सुंदर है, सुशील है, प्रेमपूर्ण है, कार्यदक्ष है, तो वह सुख प्रशंसनीय है।
० मित्र होना सुख है, परन्तु यदि मित्र दुराचारी है, मायावी है, बदनाम है, तो मित्र का सुख निंदनीय है। यदि मित्र सदाचारी है, संस्कारी है, लोकप्रिय है, तो वह सुख प्रशंसनीय है।
For Private And Personal Use Only