Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 249
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४१ प्रवचन-९६ हैं, अनेक उदाहरण-कथाएँ कही जाती हैं। इससे आगम की या ग्रन्थ की बातें सुननेवाले सरलता से समझ सकते हैं। प्रतिदिन इस प्रकार धर्मश्रवण करना चाहिए। रोजाना ज्ञानीपुरुषों का संयोग नहीं मिलता हो तो जब-जब संयोग मिले तब-तब धर्मश्रवण करना चाहिए | 'मुझे धर्मतत्त्वों को जानना है और जीवन को धर्ममय बनाना है,' इस भावना से सुनना है। सभा में से : हम इसी भावना से आते हैं न! महाराजश्री : आते होंगे! सभी इसी भावना से आते हैं, ऐसा मत मानना । एक पुरानी कहानी है। संत तुलसीदास के जमाने की कहानी है। तुलसीदासजी ने रामायण लिखी है। काव्यात्मक रामायण है। 'रामचरितमानस' के नाम से प्रसिद्ध है। तुलसीदासजी स्वयं उस रामायण का पारायण करते थे। अलगअलग गाँव के लोग तुलसीदासजी को निमंत्रण देते, अपने गाँव ले जाते और रामायण का पारायण करवाते । नाक बड़ी कि नथनी बड़ी? : __ एक गाँव में एक ही घर था वणिक का। छोटी-सी दुकान थी और पतिपत्नी आनंद से जीते थे। उस गाँव में एक दिन तुलसीदासजी आये और रामायण का पारायण किया। छोटे गाँव में ऐसे प्रसंग पर सभी लोग सुनने के लिये इकट्ठा होते हैं। रात्रि का समय होने से सभी लोगों को समय की अनुकूलता रहती है। दिन में तो गाँवों के लोग अपने खेतों में चले जाते हैं या मजदूरी करने जाते हैं। तुलसीदासजी की कथा कहने की शैली भी बढ़िया थी। कथा सुनकर सभी लोग बहुत खुश हुए। सेठ-सेठानी भी कथा सुनने गये थे। सेठानी ने घर आकर सेठ से कहा : 'मेरी इच्छा है कि अपन भी तुलसीदासजी को अपने घर निमंत्रण देकर बुलायें और कथा करवायें। आपकी क्या राय है?' सेठ ने कहा : 'पैसा कुछ इकट्ठा होने पर सोचेंगे।' परंतु जब कुछ रुपये इकट्ठे हुए, सेठ शहर में जाकर सेठानी के लिए नथनी खरीदकर लाये। पूरे ७०० रुपये की नथनी थी। सेठानी खुश हो गई। उस जमाने में, करीबन् पाँचसों वर्ष पूर्व ७०० की राशि बड़ी राशि मानी जाती थी। For Private And Personal Use Only

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