Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 254
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९६ २४६ रह सकता है। रंग-राग और भोगविलास के प्रति अरति आये बिना विवाह के औचित्य का पालन कैसे होगा? परस्त्री का त्याग और स्वस्त्री में संतोष, विरक्त मनुष्य ही रख सकता है। वैरागी त्यागी हो सकता है और नहीं भी हो सकता है। कभी वैरागी का जीवन-व्यवहार भोगप्रचुर भी हो सकता है, परंतु भीतर में वैराग्य की ज्योत जलती रहती है। इसलिए गलत रास्ते पर चलना वह पसंद नहीं करेगा। कभी राग के आवेश से गलत रास्ते पर चला गया, तो वापस लौटने में देरी नहीं होगी। विषय-विरक्त मनुष्य राग के आवेग में ज्यादा समय टिक नहीं सकता है। एक बात याद रखना, वैराग्य सहज चाहिए! दिखावा नहीं करना है वैराग्य का। एक ब्रह्मचारी था। अपने आपको वैरागी मानता था। जिस गाँव में वह रहता था, उस गाँव का राजा उदार प्रकृति का था। साधु-संतों का भक्त था। प्रभात का समय था। राजा नगर के बाहर मंदिर की ओर जा रहा था। जैसे राजा नगरद्वार से बाहर निकलता है, सामने वह ब्रह्मचारी मिल गया। वह मंदिर से लौट रहा था। राजा घोड़े से नीचे उतर गया और ब्रह्मचारी को प्रणाम कर के बोला : 'हे महात्मन्, आपका दर्शन कर मैं कृतार्थ हुआ हूँ | आप जो चाहें सो माँग लें।' ब्रह्मचारी का मन प्रसन्न हो गया । वह सोचता है : 'क्या माँगू? दो सौ-चार सौ सोनामुहरे माँग लूँ? नहीं, वे तो एक साल में खर्च हो जायेंगी। तो क्या एक गाँव का राज माँग लूँ? नहीं नहीं, जब राजा ने माँगने को कहा है तो उसका राज्य ही क्यों न माँग लूँ?' उसने राजा से कहा : 'राजन्, आपने वरदान माँगने को कहा है तो मैं आपका राज्य ही माँगता हूँ।' राजा ने कहा : 'बहुत अच्छा माँग लिया आपने! मैं इस राज-संपत्ति से मुक्त होना चाहता ही था । आप यहाँ ही खड़े रहिए | मैं मंदिर जाकर आता हूँ| फिर आपको मैं राजमहल में ले जाकर राज्य आपको समर्पित कर दूंगा।' राजा ने जो कुछ कहा, सहजता से कहा | माँगनेवाले के प्रति जरा-सा भी अभाव नहीं आया। राजा मंदिर चला गया, इधर वह ब्रह्मचारी राजा को देखता ही रह गया! वह सोचता है : 'अरे, इस राजा ने कितनी सहजता से राज्य मुझे देने को कह दिया! राजसिंहासन पर बैठा हुआ भी वह राज्य-संपत्ति से विरक्त है और मैं विरागी कहलाता हूँ फिर भी राज्य-संपत्ति के प्रति कितना For Private And Personal Use Only

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