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प्रवचन-९५
२३८ इसी क्षण, हो सके तो इसी क्षण कर लो। एक-एक क्षण का मूल्य समझो। रोजाना चिंतन करना है :
सुख-दुःख के विचारों में उलझे बिना, शुभ-अशुभ का चिंतन करें। शुभ का आदर करें, शुभ का पालन करें, शुभ का विचार करते रहें। अशुभ को त्याज्य समझें, अशुभ का अनादर करें। कभी अशुभ का सेवन करना पड़े तो भीतर से जाग्रत रहें। अशुभ को उपादेय (करने योग्य) मानने की गलती कभी नहीं करें।
० प्रतिदिन 'यह मनुष्य जीवन दुर्लभ है, यह बात याद करें।
० 'मन-वचन-काया के अशुभ योगों से मुझे इस जीवन को बचाना है, इस विषय में जाग्रत रहें।
० 'इस जीवन के एक-एक क्षण को मुझे धर्ममय बनाना है,' इस संकल्प को प्रतिदिन दोहराते रहें।
० 'संपत्ति असार है, दुनिया के संबंध क्षणिक हैं, शरीर रोगों से भरा हुआ है इसलिए इन सबके साथ मुझे निर्लेप भाव से जीना है, इस बात को प्रतिदिन याद करते रहें।
० 'मुझे ऐसा आत्मकल्याण कर लेना है कि मृत्यु मेरे लिए महोत्सव बन जाय ।' इस भावना से रोजाना भावित बनते रहें।
ग्रंथकार आचार्यभगवंत 'धर्मबिंदु' ग्रन्थ के प्रथम अध्याय का उपसंहार कर रहे हैं। उपसंहार महत्त्वपूर्ण होता है। उपसंहार में सारभूत बातें कही जाती हैं। ___ गृहस्थ जीवन में सामान्य धर्मों का पालन करते हुए आत्मकल्याण करने की बात ग्रंथकार ने कही है। करुणाभरपूर हृदय से उन्होंने यह बात कही है। निःस्वार्थ भावना से यह बात कही है। आप लोग गंभीरता से सोचना इन बातों पर । निःस्वार्थ करुणावंत ज्ञानीपुरुषों की प्रेरणा ग्रहण करने से परम शान्ति का सही मार्ग मिलता है। __ आज तो ग्रंथकार का उपसंहार बताया, कल मुझे इस चातुर्मासिक प्रवचनमाला का उपसंहार करना होगा।
आज बस, इतना ही।
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