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प्रवचन-९४
४. बदलती हुई समाजरचना में सामान्य धर्मों के प्रति दुर्लक्ष्य होता जा रहा
५. विश्व के दूसरे देशों के साथ भारत के लोगों का संबंध बढ़ता गया, वहाँ की अर्थप्रधान और कामप्रधान विकृतियाँ अपने देश में तीव्र गति से आने लगीं, इससे सामान्य धर्म का पालन भुला दिया गया है।
६. जीवों की बुद्धि में विपर्यास आ गया है। निंदनीय सुख भी अच्छे लगने लगे हैं। __ ऐसे बहुत से कारण हैं। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि वर्तमान काल में मनुष्य सामान्य धर्मों का पालन नहीं कर सकता। कर सकता है। धर्ममय व्यवहारों को जीने की द्रष्टि चाहिए | सभी जीवन-व्यवहारों को धर्ममय बनाने की तमन्ना चाहिए और ज्ञानी दीर्घदर्शी ऐसे गुरुदेवों का सान्निध्य या मार्गदर्शन चाहिए । सोच-विचारकर, ऐसे ज्ञानी एवं चारित्र्यवंत गुरुदेव को शिरच्छत्र बना लो कि जो आपको सही मार्गदर्शन देते रहें। पूरा परिवार उनके प्रति श्रद्धावान् होना चाहिए। 'पुशबेक' करनेवाला चाहिए : __ सामान्य धर्मों का और विशेष धर्मों का पालन करने के लिए ऐसा कोई प्रेरणास्रोत बहता रहना चाहिए। श्रद्धा से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। ऐसा मनोबल बना रहना चाहिए कि गलत प्रलोभनों में आप फँस नहीं जायें और भयों से डर नहीं जायें | चूँकि जो मनुष्य गलत प्रलोभनों में फँस जाता है और सच्चे-झूठे भयों से डरता रहता है, वैसा मनुष्य सामान्य धर्मों का पालन नहीं कर सकता है।
वैसे, जो मनुष्य पाँच इन्द्रिय के विषय-सुखों की तीव्र स्पृहावाला होता है और मामूली-मामूली दुःखों से भी जो डरता रहता है, वह सामान्य धर्मों का पालन नहीं कर सकता है। परंतु यदि ज्ञानी एवं करुणावंत गुरुजनों के संपर्क में रहे और उनसे प्रेरणा लेता रहे, तो परिवर्तन हो सकता है। सुखों की स्पृहा
और दुःखों का भय कम हो सकता है। इससे सामान्य धर्मों का पालन सरल बन जाता है।
० जैसे, आपका भौतिक सुखों का राग कम हुआ, आप न्याय-नीति से व्यवसाय कर सकेंगे। न्याय-नीति से व्यवसाय करने पर आपको कम आय होगी, तो भी आप अन्याय से धनोपार्जन करने का नहीं सोचेंगे। 'न्याय-संपन्न वैभव' यह पहला सामान्य धर्म है, आप उसका पालन कर सकेंगे।
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