Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 239
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- ९५ स्वर्ण-रस तो कीमती लगता है .... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३१ मान लो कि आप गिरनार की यात्रा करने गये । गिरनार के पहाड़ पर जाकर भगवान नेमिनाथ का दर्शन-पूजन किया, बड़ा उल्लास आया। पहाड़ उतरते हो, रास्ते में कोई गुफा दिखायी दी । गुफा देखने के लिए भीतर गये । वहाँ एक योगी-सिद्धपुरुष बैठे हैं। आपने उनको नम्रता से, भक्तिभाव से नमन किया, उनकी सेवा की। उस सिद्धपुरुष ने आप पर प्रसन्न होकर, एक कमंडलु स्वर्ण-रस दिया और कहा : 'बेटे, इस स्वर्ण-रस के एक बिन्दु से एक किलो लोहा सोना बन सकता है। इसलिए सम्हाल कर इस कमंडलु को घर ले जाना!' कहिए, आप उस स्वर्ण-रस को कैसा मानोगे? दुर्लभ या सुलभ ? सभा में से : दुर्लभ ही नहीं, अति दुर्लभ ! महाराजश्री : और उस कमंडलु को कितनी सावधानी से घर ले आयेंगे? एक बिन्दु भी रास्ते में गिर न जाय, इसलिए कितने सतर्क रहेंगे? और मान लो कि रास्ते में दो-चार बिन्दु गिर गये तो कितना दुःख होगा ? सभा में से पूछो ही मत.... हम लोग पागल हो जायें! महाराजश्री : दुर्लभ वस्तु का नुकसान, मनुष्य को पागल भी बना सकता है, आश्चर्य की बात नहीं है । आश्चर्य तो इस बात का मुझे हो रहा है कि, मनुष्य जीवन जैसे दुर्लभ जीवन का घोर नुकसान होने पर भी आप लोग पागल नहीं हो रहे हो! आप लोगों को यह जीवन दुर्लभ लगा है क्या ? मनुष्य जीवन का एक-एक क्षण, स्वर्ण-रस के एक-एक बूंद से भी अनन्तगुण मूल्यवान् है, यह बात सदैव याद रखें। स्वर्ण-रस की एक बूंद एक किलो सोना बनाती होगी, मनुष्य जीवन का एक क्षण असंख्य वर्ष का देव - आयुष्य निर्माण कर सकता है। आपके जीवन के एक-एक क्षण को शुभ विचार में, शुद्ध ध्यान में जोड़ दें, अनन्त पुण्यकर्म का निर्माण होगा, अनन्त पापकर्मों का नाश होगा । हरिभद्रसूरिजी जैसे तार्किक और तीव्र प्रज्ञावाले महापुरुष मनुष्य जीवन को दुर्लभ कह रहे हैं, यह बात मत भूलना। देखें, पर ज्ञानदृष्टि से : For Private And Personal Use Only आप लोग जब अनेक दुःखों से उत्पीड़ित, अनेक व्यथाओं से व्यथित, अनेक त्रासों से संत्रस्त मनुष्यों को देखते हो तब आपको मानव जीवन व्यर्थ लगता होगा? जब आप स्वयं घोर दुःखों से घिर जाते हैं तब आपको मानव जीवन असार लगता होगा ? कभी इस जीवन का अंत ला देने का विचार आया होगा? चूँकि आप लोग ज्ञानदृष्टि से सोच नहीं सकते हैं । पूर्ण ज्ञानी महापुरुषों ने जो ज्ञानदृष्टि दी है, धर्मग्रंथों में एवं महापुरुषों के चरित्रग्रंथों में

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