Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 237
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२९ प्रवचन-९४ - मनुष्य जीवन सचमुच में दुर्लभ है। देव, नारक और तिर्यंचों की सूष्टि के आगे मनुष्यों की संख्या काफी कम है...नगण्य व है! उसमें अपना 'चान्स' लग गया है तो उसका भरपूर फायदा उठा लेना चाहिए। ० हीरा जौहरी की नजरों में, पारखी की निगाहों में हीरा होता है। चरवाहे का बेटा तो उसे काँच का टुकड़ा समझकर खेलता रहेगा.... फेंक देगा। ० चिंतन का दीया जलाओ भीतर में! विचारों की ज्योत और स्वास्थ्य का घी डालते रहो दीये में। चिंतन चिरंतन रहे वैसी कोशिश करो। ० मौत बड़ा खौफनाक शब्द है, पर सत्य है...वास्तविकता है! मृत्यु के चिंतन ने कइयों के दिल में समझदारी के चिराग जला दिये! ० जलती चिता को देखकर भी चिंतन का दीया जल उठता है! 0 जो करना है सो कर लो.... भो भरना है सो भर लो। क्या = ठिकाना कल का? न जाने कल आये या नहीं भी आये? • प्रवचन : ९५ परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी, स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रंथ के प्रथम अध्याय का उपसंहार करते हुए फरमाते हैं : दुर्लभं प्राप्य मानुष्यं विधेयं हितमात्मनः । करोत्यकांड एवेह मृत्युः सर्वं न किंचनः ।।२।। दुर्लभ मनुष्य जीवन पाकर आत्मा का हित कर लेना चाहिए | कारण बताते हुए कहते हैं, मौत अचानक आ सकती है और जैसे जीवन में कुछ था ही नहीं......वैसी स्थिति बन जाती है। ___ पहली बात उन्होंने मनुष्य जीवन की दुर्लभता की बतायी है। मनुष्य का जीवन, समग्र जीवसृष्टि की अपेक्षा से दुर्लभ है। दुर्लभता और सुलभता - दोनों सापेक्ष हैं। एक वस्तु दूसरी वस्तु की अपेक्षा से दुर्लभ कही जाती है, वही वस्तु दूसरी वस्तु की अपेक्षा से सुलभ कही जाती है। अपेक्षा का खयाल रखते हुए 'दुर्लभ' एवं 'सुलभ' का विचार करना चाहिए | For Private And Personal Use Only

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