Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 227
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir M को न प्रवचन-९४ २१९ सुख की पसंदगी वैसी करो ताकि दूसरे तुम्हारे सुख की निंदा = न करें। लोकनिंदा से हमेशा बचकर रहना चाहिए। ० प्रशंसनीय सुख पाने के लिए व्यवहार-धर्म का पूरा पालन च D करना होगा। व्यवहार-धर्म की उपेक्षा करके, सामान्य धर्म को नजरअंदाज करके प्रशंसनीय सुख प्राप्त करने की इच्छा रखना व्यर्थ है। ० भय और लोभ, डर और लालच, आशंका और अतृप्ति-इनसे बचकर धर्मआराधना करना है। ० गुरुजनों का मार्गदर्शन जीवन में प्रत्येक कदम पर लेते रहें। इससे जीवन सुव्यवस्थित एवं सुदृढ़ बनेगा, साथ ही निष्प्रयोजन पाप-कार्य से आत्मा बच जायेगी। ० आजकल तो पूरा वातावरण ही बदल गया है। बदली हुई समाज-5 न व्यवस्था में सामान्य धर्मों का पालन उतना ही सहज नहीं: न है....पर करना तो होगा ही। इसके बिना चलनेवाला नहीं है। 0 नींव की उपेक्षा करके मकान को बनाने में ही लगे रहे तो = एक दिन मकान हिल उठेगा और शायद ढह भी जाये! 9Q प्रवचन : ९४ LOOG परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी, स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रंथ के प्रथम अध्याय में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन कर, उपसंहार करते हुए फरमाते हैं एवं स्वधर्मसंयुक्तं सद्गार्हस्थ्यं करोति यः। लोकद्वयेऽप्यसौ धीमान्, सुखमाप्नोत्यनिन्दितम् ।।१।। 'इस प्रकार गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों के साथ सद्गृहस्थाई को जो बुद्धिमान् मनुष्य जीता है, वह इस जीवन में और पारलौकिक जीवन में प्रशंसनीय सुख पाता है।' संसार में सुख कौन नहीं चाहता है? सभी जीव सुख चाहते हैं | भोगी सुख चाहता है, तो योगी भी सुख चाहता है! रागी सुख चाहता है तो त्यागी भी For Private And Personal Use Only

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