Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 226
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९४ २१८ में मैंने मेथ्यू के मोह को दूर किया और यहाँ उसको कर्तव्य-पालन की आज्ञा दी। मनुष्य को मोहरहित होकर कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।' ___ महत्त्व की बात मैं यह बताना चाहता हूँ कि मेथ्यू ने दोनों समय ईसा के सामने तर्क नहीं किया। वह ईसा को गुरु मानता था। ईसा के ज्ञान में, ईसा की बुद्धि में उसको विश्वास था। मेथ्यू के लिए ईसा कल्याणमित्र थे। बुद्धि जब प्रकर्ष पाती है तब आठों गुण उसमें आ जाते हैं। वह तत्त्वाभिनिवेश तक पहुँच जाती है। यानी निःशंक एवं निश्चित तत्त्वों में उसकी रमणता हो जाती है। वह अपनी बुद्धि का उपयोग दूसरों को पराजित करने के लिए नहीं करता है, परंतु दूसरों को ज्ञानी बनाने का प्रयत्न करता है। स्वयं बुद्धि का अभिमान नहीं करता है, न दूसरों का उपहास करता है। सम्यक ज्ञान की प्राप्ति में, सम्यग दर्शन की द्रढ़ता में और सम्यक चारित्र्य की आराधना में 'निपुण बुद्धि' होना अति आवश्यक है। धर्म, अर्थ और काम के पुरुषार्थों में भी 'निपुण बुद्धि' होना आवश्यक है। इसलिए बुद्धि के विषय में लापरवाही नहीं करते। मोह और अज्ञान से बुद्धि को बचाये रखने की सावधानी बरतें। आज बस, इतना ही। For Private And Personal Use Only

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