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प्रवचन-९२
२०० बुद्धि-वृद्धि एवं बुद्धि-शुद्धि के उपाय :
ज्ञान की प्राप्ति करने के लिए 'बुद्धि' ही नहीं, बुद्धि का प्रकर्ष होना आवश्यक है।
सभा में से : हमारे पास तो बुद्धि का प्रकर्ष नहीं है.
महाराजश्री : तो बुद्धि के प्रकर्षवाले ज्ञानीपुरुषों के प्रति विनीत बने रहो, सरल बने रहो। विनय से बुद्धि विकसित होती है। ज्ञानीपुरुषों की आज्ञा के अनुसार ज्ञान-प्राप्ति का प्रयत्न जारी रखो। एक बात तो याद रखना ही - तत्त्वश्रवण की इच्छा! बस, आपकी इच्छा बनी रहेगी तो ज्ञानीपुरुष आपको ज्ञानी बनायेंगे ही। आप विनय से और सरल हृदय से तत्त्वश्रवण करते रहना। जो सुनो, एकाग्रता से सुनना। एकाग्रता से सुनोगे तो बहुत कुछ याद रह जायेगा। यदि याद नहीं रहता हो तो लिख लेना। जो सुनो उसकी नोट्स Notes बनाते रहना। रोजाना उस नोट्स को पढ़ते रहोगे तो याद हो जायेगा | बुद्धि के ये प्राथमिक चार गुण हैं : सुश्रुषा, श्रवण, ग्रहण और धारणा | धारणा का अर्थ है याद रखना।
प्राप्त किये हुए ज्ञान को याद रखने का कड़ा पुरुषार्थ करना पड़ता है। यदि मनुष्य पुरुषार्थ नहीं करता है तो पुराना ज्ञान भूलता जाता है और नया नया ज्ञान प्राप्त करता जाता है। वह नया भी पुराना बन जाता है और विस्मृति के खड्डे में गिर जाता है! जितना-जितना भी ज्ञान प्राप्त करें, याद रखें, भूले नहीं।
धर्मशास्त्रों में लिखा है कि प्रमाद से, आलस्य से जो मनुष्य प्राप्त ज्ञान को भूल जाता है उसको ज्ञानावरण कर्म बंधता है! नया ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति होने पर भी जो नया ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करता है, वह भी ज्ञानावरण कर्म बाँधता है।
सभा में से : तब तो हम कितने कर्म बाँधते हैं? यह बात हम जानते ही नहीं!
महाराजश्री : अब तो जान लिया न? अब दोनों प्रकार के प्रयत्न करते रहोगे न? हाँ, गृहस्थ जीवन में यह काम भी करना है। बुद्धि है तो उसका सदुपयोग करना है। बुद्धि के जो चार गुण बताये, वे तो प्राथमिक हैं, बुद्धि की विशेषता है बाद के चार गुणों से। वे गुण हैं : विज्ञान, ऊह, अपोह और तत्त्वभिनिवेश।
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