Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 212
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ९२ २०४ सभा में से : तो फिर मंदिर और मूर्ति का विरोध क्यों करते हैं कुछ संप्रदाय ? महाराजश्री : संप्रदाय तो विरोध करता रहेगा, चूँकि कोई भी संप्रदाय बुद्धि से एवं धर्मग्रन्थों के माध्यम से गहरा चिंतन नहीं करता है । करता भी है, तो अपनी गलत मान्यता को छोड़ेगा नहीं । परंतु यदि व्यक्ति अपने बुद्धिप्रकर्ष से चिन्तन करें, धर्मग्रंथों का अध्ययन - परिशीलन करें तो वह अपने पुराने आग्रहों से मुक्त हो सकता है। आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी जैसे महान् श्रुतधर एवं ज्योतिर्धर महापुरुष के प्रति भी उन लोगों की श्रद्धा नहीं है! अन्यथा उनके ग्रंथों का मुक्त मन से अध्ययन करें तो मंदिर और मूर्ति उपादेय लगे बिना नहीं रहे। दुर्भाग्य तो यह है कि वे लोग ४५ आगम भी पूरे नहीं मानते ! जितने मानते हैं, उन आगमों पर लिखी गई 'चूर्णि ' नहीं मानते, 'निर्युक्ति' नहीं मानते, 'टीका' नहीं मानते और 'भाष्य' भी नहीं मानते ! यानी वे लोग 'पंचांगीआगम' नहीं मानते! उन लोगों की मान्यता के अनुसार वे धर्मग्रंथों को मानते हैं ! धर्मग्रंथों के अनुसार उनकी मान्यताएँ नहीं हैं! ऐसे लोग परम सत्य नहीं पा सकते हैं। सभा में से : क्या मंदिर और मूर्ति शाश्वत् हैं ? अनादिकाल से हैं? महाराजश्री : हाँ, मंदिर और मूर्ति शाश्वत् भी हैं और अशाश्वत् भी हैं । देवलोक में लाखों जिनमंदिर हैं। वे सभी शाश्वत् हैं। नंदीश्वर द्वीप पर अनेक शाश्वत् जिनमंदिर हैं और जिनमूर्तियाँ हैं । आगमग्रन्थों में इसका वर्णन मिलता है। जो मंदिर बनाये जाते हैं वे अशाश्वत् होते हैं । इस अवसर्पिणी काल में, प्रथम तीर्थंकर परमात्मा ऋषभदेव का निर्वाण अष्टापद के पहाड़ पर हुआ था। चक्रवर्ती भरत ने परमात्मा की स्मृति में मंदिर बनाया और अवसर्पिणी काल के २४ तीर्थंकर भगवंतों की रत्नमय मूर्तियाँ बनवा कर, उस मंदिर में स्थापित की । असंख्य वर्ष पुरानी यह बात है न ? मंदिर और मूर्ति अनादिकालीन हैं। जैनागमों को माननेवाले इस बात का इनकार नहीं कर सकते । संप्रदाय के बंधन के कारण नहीं मानें तो नहीं मानें! शास्त्रों में श्रद्धा रखनेवालों को मानना ही पड़ेगा। बुद्धिमान् लोग तो मानेंगे ही। खैर, हिंसा-अहिंसा के विषय को लेकर कितना चिंतन हो गया ? सभा में से : और हमारी शंका भी दूर हो गई! For Private And Personal Use Only

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